जो सदा अर्थात
तीनों कालों में और सर्वत्र सत्य रहता है । वह ही शाश्वत कहलाता है । वही सनातन
कहलाता है । इस प्रकार एक मात्र परमात्मा ही सत्य, शास्वत और सनातन है ।
हम में से कोई अथवा कोई भी जीवनधारी शास्वत
नहीं है । सनातन नहीं हैं । वह तत्व जिससे संसार में चेतना रहती है, शरीर में
चेतना रहती है वह अविनाशी परमात्मा का अविनाशी अंश है । जो कि शास्वत है, सनातन
है ।
इस संसार द्वारा दिया गया नाम और किसी भी जीवनधारी
का वर्तमान रूप (शरीर) भी सत्य नहीं है । क्योंकि यह जन्म के पहले नहीं था और यह मृत्यु के बाद भी
नहीं रहेगा । इस प्रकार प्रत्येक जीवनधारी का शरीर और नाम कल्पित है । आज है और कल
नहीं रहेगा ।
परमात्मा का
कोई भी रूप अथवा नाम शाश्वत होता है । सनातन होता है । परमात्मा के नाम, रूप, लीला
और गुण परमात्मा की ही भाँति सत्य, शास्वत और सनातन होते हैं ।
प्रत्येक जीवनधारी की मृत्यु उसके साथ ही
उत्पन्न होती है और हमेशा साथ-साथ ही रहती है । और मौका मिलते ही अपना ग्रास बना
लेती है । जैसे अंजली में लिया हुआ जल धीरे-धीरे रिसता हुआ समाप्त हो जाता
है, अंजली में कुछ नहीं बचता । इसी तरह समय धीरे-धीरे बीतता जाता है और अंत समय
कुछ भी हाथ नहीं आता है ।
इसलिए जबतक जीवन रहे सावधानी पूर्वक जीवन जीना चाहिए ।
कल क्या होगा कौन जानता है ? अतः धर्मपूर्वक जीवन जीते हुए सत्य, शाश्वत और सनातन
परमात्मा से जुड़कर रहना चाहिए । बाकी सब
नश्वर है । आज नहीं तो कल नाश को प्राप्त हो ही जाएगा । यही इस संसार की नियति है ।