जब जीव यह मान लेता हैं कि यह मेरा है, मैंने किया है तो इससे समस्या आती है । मैं और मेरे की यह भावना बंधकारी है । मन के अशांति का कारण बनती है ।
कई लोग बुढ़ापे में यह सोचकर परेशान रहते हैं कि मेरा अब कुछ रह ही नहीं गया । सब बेटे और बहू का या पोते का हो गया । इससे अशांति में जीते हैं ।
जब अपना मानकर नहीं रहा जाएगा तो यह समस्या, अधिकार की समस्या, अधिकार जाने की समस्या हावी नहीं होगी । तो इससे जनित अशांति, दुःख आदि भी नहीं होगें ।
।। जय श्रीराम ।।
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