नमस्तुभ्यं भगवते विशुद्धज्ञानमूर्तये आत्मारामाय रामाय सीतारामाय वेधसे ।।


नमस्ते राम राजेन्द्र नमः सीतामनोरम नमस्ते चंडकोदण्ड नमस्ते भक्तवत्सल ।।


दीन मलीन हीन जग मोते । रामचंद्र बल जीवत तेते ।।

Saturday, October 18, 2025

बुढ़ापे में आशांति-दुख से कैसे बचे

 जब जीव यह मान लेता हैं कि यह मेरा है, मैंने किया है तो इससे समस्या आती है  । मैं और मेरे की यह भावना बंधकारी है । मन के अशांति का कारण बनती है । 

कई लोग बुढ़ापे में यह सोचकर परेशान रहते हैं कि मेरा अब कुछ रह ही नहीं गया । सब बेटे और बहू का या पोते का हो गया । इससे अशांति में जीते हैं 


   जब अपना मानकर नहीं रहा जाएगा तो यह समस्या, अधिकार की समस्या, अधिकार जाने की समस्या हावी नहीं होगी । तो इससे जनित अशांति, दुःख आदि भी नहीं होगें । 


।। जय श्रीराम ।।

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