नमस्तुभ्यं भगवते विशुद्धज्ञानमूर्तये आत्मारामाय रामाय सीतारामाय वेधसे ।।


नमस्ते राम राजेन्द्र नमः सीतामनोरम नमस्ते चंडकोदण्ड नमस्ते भक्तवत्सल ।।


दीन मलीन हीन जग मोते । रामचंद्र बल जीवत तेते ।।

Wednesday, November 23, 2022

जय जय जय कष्टभंजन हनुमान

 श्रीहनुमते नमः   


जय जय जय कष्टभंजन हनुमान ।

क्रूर ग्रह भूतादि नियंता समरथ कृपानिधान ।।१।।

रामदूत सुंदर सब लायक महाबीर बलवान ।

हरि हर विधि सुनि गुन सुख पावत राम प्रेम धनवान ।२

महिमा अमित पार कोउ पावै सकै न कोई जान 

चारों युग प्रगट जश जागै तिहुँ पुर होत बखान ।।३।।

अंजना सुवन केसरीनंदन देत विमल मति ज्ञान ।

दुर्जन को जिमि काल कहावत राखत जन मन आन ।४

दिन प्रति लोग दरश हित आवत मन महुँ लिए अरमान ।

रोग दोष दुख सोच मिटावत जन हित परम सुजान ।।५

राम चरण अविरल रति दायक भवसागर जलजान 

दीन संतोष पवनसुत रीझे रीझत श्रीभगवान ।।६।।

 

 श्रीकष्टभंजन देव की जय   

Sunday, September 25, 2022

गहो रे मन सीताराम के चरण

 । श्रीसीतारामाभ्याम नमः 


गहो रे मन सीताराम के चरण ।

सुंदर स्याम चिन्ह कुलिसादिक, जन दुख दोष हरण ।।१।।

छियांनबे चिन्ह मनोहर सोहैं, पद तल अरुण बरण ।

मंगलमूल पवनसुत सेवित, गुनगन अमित धरण ।।२।।

सुर मुनि साधु चहत पद पंकज, कल्मष कोटि दरण ।

सबबिधि लायक जनसुखदायक, तारण और तरण ।।३।।

अगजग जीवन मूरि सजीवन, संसृत रोग हरण ।

हरि हर बिधि को भाग्य बिधाता, कारण और करण ।।४।।

दीन मलीन ठौर को दायक, पोषण और भरण ।

दीन संतोष असरण जग जेते, तिनको एक सरण ।।५।।

 

।। श्रीसीताराम भगवान की जय ।।

Wednesday, September 7, 2022

कृष्ण रूप प्रगटे रघुराई

कृष्ण रूप प्रगटे रघुराई ।

दशरथ कौशल्या मन भावन बालकेलि सुख पाई ।।१।।

वीरसेन रत्नालका देवी सोइ सुख हित मन लाई ।

भगति प्रेम सेवा तप कीन्हें दम्पति अति हर्षाई ।।२।।

परमोदार राम प्रभु प्रगटे बोले गिरा सुहाई ।

द्वापर नन्द यशोदा बनिहौ गोकुल गाँव रहाई ।।३।।

तब शिशु रूप प्रगट होइ रहिहौं माता-पिता बनाई ।

ग्यारह बरष बाल सुख दैहों बसौ अमरपुर जाई ।।४।।

धरा द्रोण बसु बने अमरपुर पुनि जन्में जब आई ।

रघुवर कृष्ण रूप तब जनमें घर-घर मोद बधाई ।।५।।

दीन संतोष देवकीनन्दन गए यहि रूप समाई ।

कृष्णचंद्र निज जन मन राखे चरित किए सुखदाई ।।६।।


।। श्रीकृष्णचंद्र भगवान की जय ।। 

Friday, August 19, 2022

रघुपति कृष्ण कृष्ण रघुवीरा । उभय भजन भंजन भवभीरा ।।

कई लोग भगवान श्रीकृष्ण को भगवान श्रीराम से भिन्न अथवा उत्कृष्ट बताने अथवा सिद्ध करने में लगे रहते हैं । इसके दो प्रमुख कारण हैं । एक है अज्ञानता और दूसरा है आसक्ति ।

 

 लेकिन सिद्धांत यही है कि जो दशरथ नंदन श्रीराम हैं वे ही नंद नंदन श्रीकृष्ण हैं । जो लोग भेद करते हैं उन्हें मूर्ख अथवा मतिमंद कहा गया है-

 

   जो रघुनंद सोई नंदनंदा । उभै भेद भाखत मतिमंदा ।।

 

रत्नहरि जी कहते हैं कि सुखों की खानि जिन राम जी को रानी कौशल्या ने अयोध्या में जन्म दिया वे ही राम जी गोकुल में यशोदा के पुत्र हैं-

 

जन्यो जो इत कौशल्या रानी । जसुमत सुत उत सोई गुनखानी ।।

 

रत्नहरि जी आगे कहते हैं कि श्रीराम ही श्रीकृष्ण हैं और श्रीकृष्ण ही श्रीराम हैं और दोनों के भजन से भव भय का नाश हो जाता है-

 

रघुपति कृष्ण कृष्ण रघुवीरा । उभय भजन भंजन भवभीरा ।।

 

इस प्रकार रघुकुल नंदन श्रीराम ही नंद नंदन श्रीकृष्ण हैं । और मतिमंद लोग ही प्रलाप करते हैं और राम कृष्ण को भिन्न बताते हैं । अथवा किसी को कम और किसी को ज्यादा बताते हैं ।


इसी तरह साकेत महाकाव्य के रचनाकार श्रीमैथिलीशरण गुप्त जी राम और कृष्ण को एक बताते हुए कहते हैं कि –


धनुष वाण या वेणु लो श्याम रूप के संग

मुझपे चढ़ने से रहा राम दूसरा रंग ।।


 

।। भगवान श्रीरामकृष्ण की जय ।।

Tuesday, February 1, 2022

वन उपवन अरु कुंज गलिन में खोजत श्याम शरीर- चलो मन कालिंदी के तीर

 

चलो मन कालिंदी के तीर ।

रवि तनुजा जल मज्जन कीजे, श्यामल पावन नीर ।।१।।

मन मोहन जहँ गाय चरावत, संग सखा बलवीर ।

वृंदावन सो धाम की महिमा, गावत मुनि मतिधीर ।।२।।

मथुरा, नन्द गाँव बरसाना, गोकुल सुजन सनीर ।

वन उपवन अरु कुंज गलिन में, खोजत श्याम शरीर ।।३।।

राधा मोहन रास विहारी, राधारमन मन हीर ।

बांकेबिहारी गिरि गोवर्धन, दर्शन करु धरि धीर ।।४।।

वंशीवट गोपेश्वर आदिक, धरिये वृज रज सीर ।

दीन संतोष दीन सुखदायक, राधावर यदुवीर ।।५।।


   ।। राधारमण भगवान की जय ।।

Friday, January 7, 2022

जय हनुमान जय मंगल करता

।। श्रीहनुमते  नमः ।।

 

जय हनुमान जय मंगल करता ।

सुर मुनि साधु सुजन दुख हरता ।।१।।

राम चरन पंकज मन राता ।

वेद शास्त्र आदिक के ज्ञाता ।।२।।

विद्या बुधि बल ज्ञान निकेते ।

सुमिरत परम पदारथ देते ।।३।।

राम चरित सुनि अति सुख पावत ।

पुलक रोमांच नयन भरि आवत ।।४।।

अंग तीन संगीत कहावत ।

पूण निपुण रघुनाथ रिझावत ।।५।।

भारत में पारथ रथ केतू ।

राजे आइ विजय वर हेतू ।।६।।

राम काज सुर काज करैया ।

गिरि गोवर्धन द्रोण धरैया ।।७।।

वृंजमंडल पे कृपा कीन्हेउ ।

गिरि गोवर्धन सुंदर दीन्हेउ ।।८।।

दीन मलीन सदा दुख हारेउ ।

चारहुँ युग लीला विस्तारेउ ।।९।।

दीन मलीन देखि सुधि लेते ।

अचल राम पद ठाहरु देते ।।१०।।

रामदूत मोहि निपट बिसारे ।

देखत ओर तोर मन मारे ।।११।।

दीन मलीन संतोष दुखारी ।

राम चरन अरु आस तुम्हारी ।।१२।।

 

।। जय हनुमानजी ।।

 http://sriramprabhukripa.blogspot.com/

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