नमस्तुभ्यं भगवते विशुद्धज्ञानमूर्तये आत्मारामाय रामाय सीतारामाय वेधसे ।।


नमस्ते राम राजेन्द्र नमः सीतामनोरम नमस्ते चंडकोदण्ड नमस्ते भक्तवत्सल ।।


दीन मलीन हीन जग मोते । रामचंद्र बल जीवत तेते ।।

Friday, May 22, 2020

सत्य, शास्वत और सनातन


जो सदा अर्थात तीनों कालों में और सर्वत्र सत्य रहता है । वह ही शाश्वत कहलाता है । वही सनातन कहलाता है । इस प्रकार एक मात्र परमात्मा ही सत्य, शास्वत और सनातन है ।


 हम में से कोई अथवा कोई भी जीवनधारी शास्वत नहीं है । सनातन नहीं हैं । वह तत्व जिससे संसार में चेतना रहती है, शरीर में चेतना रहती है वह अविनाशी परमात्मा का अविनाशी अंश है । जो कि शास्वत है, सनातन है ।


  इस संसार द्वारा दिया गया नाम और किसी भी जीवनधारी का वर्तमान रूप (शरीर) भी सत्य नहीं है । क्योंकि यह  जन्म के पहले नहीं था और यह मृत्यु के बाद भी नहीं रहेगा । इस प्रकार प्रत्येक जीवनधारी का शरीर और नाम कल्पित है । आज है और कल नहीं रहेगा । 


परमात्मा का कोई भी रूप अथवा नाम शाश्वत होता है । सनातन होता है । परमात्मा के नाम, रूप, लीला और गुण परमात्मा की ही भाँति सत्य, शास्वत और सनातन होते हैं ।


  प्रत्येक जीवनधारी की मृत्यु उसके साथ ही उत्पन्न होती है और हमेशा साथ-साथ ही रहती है । और मौका मिलते ही अपना ग्रास बना लेती है । जैसे अंजली में लिया हुआ जल धीरे-धीरे रिसता हुआ समाप्त हो जाता है, अंजली में कुछ नहीं बचता । इसी तरह समय धीरे-धीरे बीतता जाता है और अंत समय कुछ भी हाथ नहीं आता है । 


   इसलिए जबतक जीवन रहे सावधानी पूर्वक जीवन जीना चाहिए । कल क्या होगा कौन जानता है ? अतः धर्मपूर्वक जीवन जीते हुए सत्य, शाश्वत और सनातन परमात्मा से जुड़कर रहना चाहिए ।  बाकी सब नश्वर है । आज नहीं तो कल नाश को प्राप्त हो ही जाएगा । यही इस संसार की नियति है ।



। जय श्रीराम 

लोकप्रिय पोस्ट