कई लोग भगवान श्रीकृष्ण को भगवान श्रीराम से भिन्न अथवा उत्कृष्ट बताने अथवा सिद्ध करने में लगे रहते हैं । इसके दो प्रमुख कारण हैं । एक है अज्ञानता और दूसरा है आसक्ति ।
लेकिन सिद्धांत यही है कि जो दशरथ नंदन श्रीराम हैं वे ही नंद नंदन श्रीकृष्ण हैं । जो लोग भेद करते हैं उन्हें मूर्ख अथवा मतिमंद कहा गया है-
जो रघुनंद सोई नंदनंदा । उभै भेद भाखत मतिमंदा ।।
रत्नहरि जी कहते हैं कि सुखों की खानि जिन राम जी को रानी कौशल्या ने अयोध्या में जन्म दिया वे ही राम जी गोकुल में यशोदा के पुत्र हैं-
जन्यो जो इत कौशल्या रानी । जसुमत सुत उत सोई गुनखानी ।।
रत्नहरि जी आगे कहते हैं कि श्रीराम ही श्रीकृष्ण हैं और श्रीकृष्ण ही श्रीराम हैं और दोनों के भजन से भव भय का नाश हो जाता है-
रघुपति कृष्ण कृष्ण रघुवीरा । उभय भजन भंजन भवभीरा ।।
इस प्रकार रघुकुल नंदन श्रीराम ही नंद नंदन श्रीकृष्ण हैं । और मतिमंद लोग ही प्रलाप करते हैं और राम कृष्ण को भिन्न बताते हैं । अथवा किसी को कम और किसी को ज्यादा बताते हैं ।
इसी तरह साकेत महाकाव्य के रचनाकार
श्रीमैथिलीशरण गुप्त जी राम और कृष्ण को एक बताते हुए कहते हैं कि –
धनुष वाण या वेणु लो श्याम
रूप के संग ।
मुझपे चढ़ने से रहा राम
दूसरा रंग ।।
।। भगवान श्रीरामकृष्ण की जय ।।