नमस्तुभ्यं भगवते विशुद्धज्ञानमूर्तये आत्मारामाय रामाय सीतारामाय वेधसे ।।


नमस्ते राम राजेन्द्र नमः सीतामनोरम नमस्ते चंडकोदण्ड नमस्ते भक्तवत्सल ।।


दीन मलीन हीन जग मोते । रामचंद्र बल जीवत तेते ।।

Sunday, April 16, 2023

अध्यात्मिक खेल- क्या बेहोश होना और लीला में प्रवेश होना एक ही है ?

 

घोर कलियुग है । आगे घोरतम कलियुग आएगा । आजकल भगवद प्राप्ति, भगवद दर्शन और लीला में प्रवेश आदि को खेल समझा जा रहा है ।

 

किसी को सपने में भगवान के दर्शन अथवा कुछ अनुभव हो जाए तो कहने लगते हैं कि इनको भगवान के दर्शन होते हैं । यह स्पष्ट नहीं बोलते कि सपने में भगवान के दर्शन हुए हैं अथवा होते हैं । सामने सुनने वाला मान भी लेता है कि जब गुरू जी ही इतने पहुँचे हुए हैं तो उनका संग करने वाले को भगवान का दर्शन हो तो इसमें क्या बड़ी बात है ?

 

एक लोग बता रहे थे कि एक महिला को ‘लो ब्लड प्रेशर’ की समस्या रहती है । जिससे वह कई बार बेहोश भी हो जाती है । ज्यादा सोचने पर, टेंशन करने पर भी बेहोश हो जाती है । उसके पति ने उसके गुरू जी से बताया कि इनका स्वास्थ्य सही नहीं रहता है ।  ‘बीपी-ब्लड प्रेशर’ भी लो  रहता है । कभी-कभी बेहोश भी हो जाती हैं । अभी कल पूजा घर में ही बेहोश हो गयीं थी । तब गुरू जी ने कहा कि तुम्हें क्या पता कि ये बेहोश हुईं थी कि इनका लीला में प्रवेश हो गया था ?

 

  इस कलियुग में बेहोश होना भी लीला में प्रवेश होना हो गया है । भगवद प्राप्ति, भवद दर्शन और लीला में प्रवेश को लोगों ने कितना हल्का बना दिया है । ऐसे हल्के लोगों से सावधान रहने की जरूरत है-


 रामदास कलिकाल में, खेल खेल में खेल ।

दर्शन प्राप्ती खेल भै, खेल भै लीला मेल ।। 

 

 

।। जय श्रीराम ।।

Thursday, April 13, 2023

कलियुग में व्रह्म ज्ञानी बहुत बढ़ जाते हैं

 

सनातन धर्म में चार युग होते हैं- सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग । और युगों  की अपेक्षा व्रह्म ज्ञानी कलियुग में बहुत अधिक बढ़ जाते हैं । अर्थात अन्य युगों में इतने व्रह्म ज्ञानी नहीं होते हैं जितने कलियुग में होते हैं ।

 

   कलियुग में अधिकांश लोग अपने को कई दूसरों को प्रचारित करने लगते हैं कि ये व्रह्म में स्थित हैं । भले ही व्रह्म में स्थित होने का मतलब न जानते हों ।

 

  कई लोग जो कुछ सत्संग कर लेते हैं, कुछ नाम जप कर लेते हैं वे लोग अपने  को व्रह्म ज्ञानी समझने लगते हैं । व्रह्म ज्ञान से नीचे की बात ये लोग करते ही नहीं हैं । इस प्रकार व्रह्म ज्ञानियों की संख्या कलियुग में बहुत बढ़ जाती है ।

 

   प्रसिद्ध संत और श्रीराम भक्त गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज श्रीरामचरित मानस जी में कहते हैं कि कलियुग में स्त्री और पुरुष व्रह्म ज्ञान के अलावा दूसरी बात नहीं करते । बाहर से तो ब्रह्म ज्ञान की बात करते हैं और अंदर से खोखले होते हैं-

 

ब्रह्म ज्ञान बिनु नारि-नर कहहिं न दूसर बात । 

कौड़ी लागि लोभ बस करहिं बिप्र गुर घात । 

                                    - श्रीरामचरितमानस ।

 

 

।। जय श्रीराम ।।

 

Sunday, April 2, 2023

आश्रित जन- भक्त के लक्षण


कई लोग ऐसा बोलते हैं अथवा बोल देते हैं कि हम तो भगवान के आश्रित हैं । लेकिन ऐसा बोल तो देते हैं लेकिन कहीं न कहीं संसार का ही आश्रय लिए होते हैं । 


  किसी को शिष्य का आश्रय, किसी को अपने प्रेमी जन का, किसी को मित्र का, किसी को पुत्र का, किसी को धन का और किसी को बल आदि का आश्रय होता है । और यह बात भगवान को बिल्कुल पसंद नहीं आती है कि कहलाये उनका दास और आश्रय लिए रहे संसार का –


मोर दास कहाइ नर आसा । करय तौ कहहु कहा बिस्वासा ।।

 

ऐसे में यह प्रश्न उठता है कि आश्रित भक्त कौन होता है ? इनके लक्षण क्या होते हैं ? आश्रित भक्त का योग-क्षेम भगवान वहन करते हैं । यह कहना कि हम भगवान के आश्रित हैं, बहुत आसान होता है । मुँह से बोलने में क्या जाता है ? लेकिन वास्तव में भगवान के आश्रित होना आसान नहीं होता है । और यदि कोई वास्तव में भगवान के आश्रित हो जाए तो उसकी रखवारी भगवान स्वयं करने लगते हैं-


करउँ सदा तिन कर रखवारी । जिमि बालक राखय महतारी ।।

 

निम्नलिखित दोहों के माध्यम से आश्रित भक्त के लक्षण को समझाया गया है-

 

एक आस रघुवीर की, दूजी आस न होय ।

बल संबल अवलंब नहिं, राम सिवा जग कोय ।।

 

राम राम रघुपति रटे, गुन गावै मन लाय ।

रामदास आश्रित सुजन,  विरला ही कहलाय ।।

 

।। जय श्रीराम ।।

 

 

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