नमस्तुभ्यं भगवते विशुद्धज्ञानमूर्तये आत्मारामाय रामाय सीतारामाय वेधसे ।।


नमस्ते राम राजेन्द्र नमः सीतामनोरम नमस्ते चंडकोदण्ड नमस्ते भक्तवत्सल ।।


दीन मलीन हीन जग मोते । रामचंद्र बल जीवत तेते ।।

Sunday, February 5, 2023

जब एक संत बहुत रोये- भगवान में सच्चा प्रेम कहाँ है ?

 

एक संत बता रहे थे कि एक महात्मा थे । एक बार वे एक क्षेत्र में भगवान के मंदिर में दर्शन हेतु गए । उस क्षेत्र के लोग अपने प्रेम और भाव के अनुसार संतजी को अपने घर बुलाने लगे ।

 

 जब संतजी लोगों के यहाँ जाते तो सबके यहाँ उनको एक विशेष भोजन जरूर मिलता । जिसे यहाँ हलवा कहा जा रहा है ।

 

संतजी ने एक व्यक्ति से पूछा कि क्या यहाँ के लोग हलवा अधिक खाते हैं । हम जहाँ जाते हैं वहाँ हलवा जरूर मिलता है । वह व्यक्ति बोला नहीं महाराज जी ऐसा नहीं है । लेकिन यहाँ के लोगों के मन में यह बात बैठी हुई है कि आपको हलवा बहुत प्रिय है । इसलिए आपकी रूचि को देखते हुए ये लोग आप के लिए हलवा जरूर बना देते हैं ।

 

यह सुनते ही संत जी रोने लगे । और बहुत रोये । किसी के कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि अभी तो बात कर रहे थे अचानक रोने क्यों लगे ?  संत जी रोये जा रहे थे ।

 

  लोग पूछने लगे कि महाराज जी क्या हो गया ? कुछ तो बताइए क्या हुआ । तब संतजी ने कहा बच्चा हमने घर क्यों छोड़ा- भगवान के लिए । साधू क्यों बने भगवान के लिए । भगवान प्रिय हो जाएँ इसके लिए साधू बने थे, घर छोड़ा  था । हलवा प्रिय हो जाय इसके लिए तो घर नहीं छोड़ा था । रूचि होनी चाहिए थी केवल और केवल भगवान में और रूचि हो गाई हलवे में ।

 

साधू की प्रत्येक करनी से, रहनी से यही संदेश जाना चाहिए कि केवल और केवल इन्हें भगवान प्रिय हैं । और यहाँ तो उल्टा संदेश जा रहा है कि महाराज जी को हलवा प्रिय है । ऐसी साधुता पर धिक्कार है । इसलिए रोना आ रहा है । 


जब तक संसार के किसी व्यक्ति, वस्तु अथवा पदार्थ में रूचि है तब तक सच्ची साधुता कहाँ है ? और भगवान में सच्चा प्रेम कहाँ है ?


जब तक रूचि संसार में हरि से प्रीति न होय । 

व्यक्ति पदारथ वस्तु रुचि तजता बिरला कोय ।  

 

 

।। जय श्रीराम ।।

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