सनातन धर्म में चार युग होते हैं- सतयुग, त्रेता, द्वापर और
कलियुग । और युगों की अपेक्षा व्रह्म
ज्ञानी कलियुग में बहुत अधिक बढ़ जाते हैं । अर्थात अन्य युगों में इतने व्रह्म
ज्ञानी नहीं होते हैं जितने कलियुग में होते हैं ।
कलियुग में अधिकांश लोग
अपने को कई दूसरों को प्रचारित करने लगते हैं कि ये व्रह्म में स्थित हैं । भले ही
व्रह्म में स्थित होने का मतलब न जानते हों ।
कई लोग जो कुछ सत्संग
कर लेते हैं, कुछ नाम जप कर लेते हैं वे लोग अपने को व्रह्म ज्ञानी समझने लगते हैं । व्रह्म ज्ञान
से नीचे की बात ये लोग करते ही नहीं हैं । इस प्रकार व्रह्म ज्ञानियों की संख्या
कलियुग में बहुत बढ़ जाती है ।
प्रसिद्ध संत और
श्रीराम भक्त गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज श्रीरामचरित मानस जी में कहते हैं कि
कलियुग में स्त्री और पुरुष व्रह्म ज्ञान के अलावा दूसरी बात नहीं करते । बाहर से
तो ब्रह्म ज्ञान की बात करते हैं और अंदर से खोखले होते हैं-
ब्रह्म ज्ञान बिनु नारि-नर कहहिं न दूसर बात ।
कौड़ी लागि लोभ बस करहिं बिप्र गुर घात ।।
- श्रीरामचरितमानस ।
।। जय श्रीराम ।।
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