नमस्तुभ्यं भगवते विशुद्धज्ञानमूर्तये आत्मारामाय रामाय सीतारामाय वेधसे ।।


नमस्ते राम राजेन्द्र नमः सीतामनोरम नमस्ते चंडकोदण्ड नमस्ते भक्तवत्सल ।।


दीन मलीन हीन जग मोते । रामचंद्र बल जीवत तेते ।।

Thursday, April 13, 2023

कलियुग में व्रह्म ज्ञानी बहुत बढ़ जाते हैं

 

सनातन धर्म में चार युग होते हैं- सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग । और युगों  की अपेक्षा व्रह्म ज्ञानी कलियुग में बहुत अधिक बढ़ जाते हैं । अर्थात अन्य युगों में इतने व्रह्म ज्ञानी नहीं होते हैं जितने कलियुग में होते हैं ।

 

   कलियुग में अधिकांश लोग अपने को कई दूसरों को प्रचारित करने लगते हैं कि ये व्रह्म में स्थित हैं । भले ही व्रह्म में स्थित होने का मतलब न जानते हों ।

 

  कई लोग जो कुछ सत्संग कर लेते हैं, कुछ नाम जप कर लेते हैं वे लोग अपने  को व्रह्म ज्ञानी समझने लगते हैं । व्रह्म ज्ञान से नीचे की बात ये लोग करते ही नहीं हैं । इस प्रकार व्रह्म ज्ञानियों की संख्या कलियुग में बहुत बढ़ जाती है ।

 

   प्रसिद्ध संत और श्रीराम भक्त गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज श्रीरामचरित मानस जी में कहते हैं कि कलियुग में स्त्री और पुरुष व्रह्म ज्ञान के अलावा दूसरी बात नहीं करते । बाहर से तो ब्रह्म ज्ञान की बात करते हैं और अंदर से खोखले होते हैं-

 

ब्रह्म ज्ञान बिनु नारि-नर कहहिं न दूसर बात । 

कौड़ी लागि लोभ बस करहिं बिप्र गुर घात । 

                                    - श्रीरामचरितमानस ।

 

 

।। जय श्रीराम ।।

 

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