नमस्तुभ्यं भगवते विशुद्धज्ञानमूर्तये आत्मारामाय रामाय सीतारामाय वेधसे ।।


नमस्ते राम राजेन्द्र नमः सीतामनोरम नमस्ते चंडकोदण्ड नमस्ते भक्तवत्सल ।।


दीन मलीन हीन जग मोते । रामचंद्र बल जीवत तेते ।।

Thursday, November 5, 2020

राघव मोरे दीन हितैषी

 राघव मोरे दीन हितैषी ।


जेहि दीनन कोई बात न पूछै जग करै ऐसी तैसी ।। १ ।।


तेहि दीनन गहि बाँह निवाजत कुशल निभै कहौ कैसी ।


देत-दिवावत मान सुधारत बिगरी हो चाहे जैसी ।। २ ।।


पलक नयन जिमि दास को राखत मेटत सकल अनैसी ।


दीन संतोष निज धाम बसावत रीति कहीं नहीं ऐसी ।। ३ ।।

 


।। दीन हितैषी भगवान राम की जय ।।

Thursday, July 2, 2020

सनातन धर्म के प्रत्यक्ष देवता- सूर्य नारायण


सनातन धर्म के सूर्य देव प्रत्यक्ष देवता हैं । इन्हें सूर्य नारायण भी कहा जाता है । इनकी बड़ी महिमा है । वेद-पुराण, रामायण, महाभारत, श्रीरामचरितमानस आदि में सूर्य देव का वर्णन है । ग्रंथों में इनकी महिमा मुक्तकंठ से गाई गई है ।

 

   सनातन धर्म के पंच देवताओं में से सूर्य देव भी एक देवता हैं । सनातन धर्म में सूर्योपासना का महत्वपूर्ण स्थान है । सूर्य देव को प्रातःकाल जल अर्पण किया जाता है और इसका अनुपम लाभ भी होता है ।

 

   सूर्य देव प्रत्येक प्राणी, वनस्पति आदि के लिए जीवनदाई हैं । सूर्य के बिना जीवन की कल्पना तक नहीं की जा सकती है । कोई भी व्यक्ति वो चाहे जिस देश अथवा धर्म का हो सूर्य देव सबको प्रकाश देते हैं । बिना भेदभाव के सबका कल्याण करते हैं । सूर्य देव सनातन हैं । आदि काल से हैं । और सनातन धर्म के पूजनीय देवता है ।

 

  सामान्यतयाः बोलचाल की भाषा में हम लोग कहते हैं कि सूर्य का उदय पूरब दिशा में होता है । और सूर्य पश्चिम दिशा में अस्त होता है । लेकिन सनातन धर्म के अनुसार सूर्य का न उदय होता है और न अस्त । अर्थात सूर्य देव हमेशा उदित ही रहते हैं । इस तथ्य का वर्णन पुराणों में मिलता है ।


 सूर्यदेव की निम्नलिखित स्तुति बड़ी ही सुंदर है और यह श्रीविनयपत्रिका जी से ली गई है । इसमें सूर्य देवता की महिमा का वर्णन है-

 

दीनदयाल दिवाकर देवा । कर मुनि मनुज सुरासुर सेवा ।।

हिम तम कर केहरि करमाली । दहन दोष दुख दुरित रुजाली ।।

कोक कोकनद लोक प्रकाशी । तेज प्रताप रूप रस राशी ।।

सारथि पंगु दिव्य रथ गामी । हरि शंकर बिधि मूरति स्वामी ।।

वेद पुराण प्रगट जश जागे । तुलसी राम भगति वर माँगे ।।

 

 सूर्य नारायण में व्रह्माजी, विष्णुजी और शंकरजी सबके दर्शन होते हैं । अर्थात सूर्य नारायण व्रह्माजी, विष्णुजी और शंकरजी मय हैं ।

 

  इसी तरह ग्रंथों में कहा गया कि सूर्य मंडल में भगवान श्रीसीताराम स्थित हैं । इसका वर्णन सनत्कुमारसंहिता आदि ग्रंथों में मिलता है ।

 

  कुलमिलाकर सूर्य देवता सनातन धर्म के पूजनीय देवता हैं । और पत्येक सनातन धर्मी को सूर्य पूजन करनी चाहिए । श्रीवाल्मीकि रामायण में आदित्य  ह्रदय स्तोत्र का वर्णन है जिसके पाठ से सूर्य देव की प्रसन्नता, निरोगता और शत्रु पर विजय आदि प्राप्त होती है ।

 


।। जय श्रीसूर्य नारायण ।।


Saturday, June 6, 2020

सनातन धर्म ‘सत्यम शिवम सुंदरम’ है

सनातन धर्म अद्वितीय धर्म है । भूतकाल का कोई भी काल खंड ऐसा नहीं है जब सनातन धर्म न रहा हो । सतयुग, त्रेता और द्वापर में तो केवल सनातन धर्म ही था । इस प्रकार सनातन धर्म सदा-सर्वदा से चलता ही आ रहा है अर्थात यह शास्वत है और इसलिए यह धर्म सत्य है ।

 शिवम का मतलब होता है कल्याणकारी । और सनातन धर्म मनुष्य, पशु-पक्षी, धरती, आकाश, जल, नदी, पर्वत, समुंद्र सबका कल्याण करने वाला है । इसमें सबके कल्याण की कामना की गई है । पूरे विश्व में सुख, शान्ति और समस्त प्राणियों में सद्भावना की कामना सनातन धर्म करता है । इस प्रकार सनातन धर्म शिवम है ।

सनातन धर्म बड़ा ही सुंदर है । जो सत्य हो और कल्याणकारी हो वह सुंदर तो होगा ही । सनातन धर्म के सिद्धांत बड़े मनोरम और व्यवहारिक हैं । सनातन धर्म कर्म के सिद्धांत को समझाने वाला है । मनुष्य जैसा कर्म करता है उसके अनुरूप ही फल प्राप्त करता है और यह कर्म ही उसके पुनर्जन्म के लिए भी उत्तरदायी होता है । कर्म का सिद्धांत अमिट है ।

   सनातन धर्म के अनुसार पशु-पक्षी, मनुष्य और कीड़ेमकोड़े सब मिलाकर चौरासी लाख योनियाँ हैं । जिसमें जीव अपने कर्म के अनुसार जन्मता और दुःख-सुख का अनुभव करता है ।

 सनातन धर्म के अनुसार मनुष्य जीवन पाकर परहित, दया, सत्य और अहिंसा को अपने जीवन में उतारना चाहिए । क्योंकि सनातन धर्म के अनुसार परहित, दया, सत्य और अहिंसा धर्म हैं । पुण्य हैं ।

 मनुष्य जीवन पाकर परपीड़ा, निंदा, झूठ और हिंसा से दूर रहना चाहिए क्योंकि ए सब अधर्म और पाप कर्म के अंतर्गत आते हैं ।

  सनातन धर्म के अनुसार मनुष्य जीवन की सफलता तभी है जब जीवन में सत्य, सदाचार, दया, अहिंसा और परहित आदि गुण हों तथा साथ में भगवद चरनानुराग हो-

परहितदयासत्यअहिंसा को धर्म-पुण्य बतलाता है 
परपीड़ानिंदाझूठहिंसा को अधर्म-पाप बताता है ।।
मानव जीवन का उद्देश्य है क्या सबको यह समझाता है 
जग जीवन पा श्रीराम भजो सबको सदराह दिखाता है ।।

 कुल मिलाकर सनातन धर्म सबको सदराह दिखाता है समस्त संसार में सुख शांति की कामना करता है । समस्त प्राणियों में सद्भावना की कामना करता है और प्राणीमात्र के कल्याण की बात करता है । इस प्रकार सनातन धर्म सत्य है । कल्याणकारी है । और सुंदर है ।

। जय श्रीराम ।।



Monday, June 1, 2020

सनातन धर्म- शास्वत बड़ा पुरातन है


सनातन धर्म अनादि धर्म है । इसका न आदि है न अंत है । अर्थात सनातन धर्म आदि-अंत रहित शास्वत धर्म है । इसका कभी अंत नहीं होता और यह हमेशा चलता ही रहता है । इसलिए ही इसे सत्य सनातन धर्म कहा जाता है-

आर्य धर्म है वही जिसे हम कहते धर्म सनातन है ।
युग युग से ही चलता आये शाश्वत बड़ा पुरातन है ।।
वेदपुराणशास्त्ररामायणउपनिषद में जिसका वर्णन है 
जो समझ सके कुछ तथ्यों को बस जाता उसका ही मन है ।।


  वेद वर्णित धर्म ही सनातन धर्म है । वेद, पुराण उपनिषद और रामायण आदि में जिस धर्म का वर्णन है वह सनातन धर्म है । इसे ही हिंदू धर्म और आर्य धर्म भी कहा जाता है ।

सनातन धर्म संसार का सबसे प्राचीनतम धर्म है । यह समस्त विश्व के कल्याण की और सर्वत्र शांति और प्राणीमात्र के सुख की कामना करने वाला धर्म है ।

जिस धर्म को कोई शुरू करता है उसे उस धर्म का प्रवर्तक कहा जाता है । प्रवर्तक के पहले उस धर्म का, जिसे प्रवर्तक शुरू करता है, अस्तित्व नहीं रहता है । लेकिन सनातनधर्म सदा चलता ही रहता है इसलिए इसका कोई प्रवर्तक नहीं है । सनातन धर्म भगवत स्वरूप ही है ।


सनातन धर्म के अनुसार जब-जब धरती पर अधर्म-पाप बहुत अधिक बढ़ जाता है तब भगवान स्वयं अवतार लेकर प्रकट होते हैं । और अधर्म-पाप को मिटाकर सनातन धर्म की रक्षा करते हैं ।


 सनातन धर्म मानवता को पुष्ट करने वाला धर्म है जब धरती पर राक्षसत्व बढ़ता है तब सनातन धर्म पर संकट आ जाता है क्योंकि इससे अधर्म और पाप बढ़ जाते हैं सनातन धर्म में भगवान का अवतार धर्म को बचाने के लिए होता है-


अधर्म-पाप जब-जब धरती पे बहुत अधिक बढ़ जाते हैं 
तब-तब धर्म की रक्षा को भगवान धरा पे आते हैं ।।
भगवान धरापे आकरके कुछ और नहीं दिखलाते हैं 
इनके आने के पहले भीजो धर्म उसीको बचाते हैं ।।
राक्षसत्व मिटाके धरती से सबको शुभ राह दिखाते हैं 
कुछ और नहीं यह आर्य-धर्म जिसकी हम गाथा गाते हैं ।।

इस प्रकार सनातन धर्म आदि, अंत रहित शास्वत धर्म है । इसका कोई प्रवर्तक नहीं है । यह बहुत ही प्राचीनतम धर्म है जो सदा चलता ही रहता है । इसे आर्य धर्म और हिंदू धर्म भी कहा जाता है । धरती पर जब-जब अधर्म और पाप अधिक बढ़ जाते हैं तब भगवान स्वयं अवतार लेकर अधर्म और पापको मिटाकरके सनातन धर्म की रक्षा करते है । जिससे संसार में सुख और शांति का समावेश हो जाता है । और मानवता पुष्ट हो जाती है तथा राक्षसत्व का अंत हो जाता है ।

। जय श्रीराम 

Friday, May 22, 2020

सत्य, शास्वत और सनातन


जो सदा अर्थात तीनों कालों में और सर्वत्र सत्य रहता है । वह ही शाश्वत कहलाता है । वही सनातन कहलाता है । इस प्रकार एक मात्र परमात्मा ही सत्य, शास्वत और सनातन है ।


 हम में से कोई अथवा कोई भी जीवनधारी शास्वत नहीं है । सनातन नहीं हैं । वह तत्व जिससे संसार में चेतना रहती है, शरीर में चेतना रहती है वह अविनाशी परमात्मा का अविनाशी अंश है । जो कि शास्वत है, सनातन है ।


  इस संसार द्वारा दिया गया नाम और किसी भी जीवनधारी का वर्तमान रूप (शरीर) भी सत्य नहीं है । क्योंकि यह  जन्म के पहले नहीं था और यह मृत्यु के बाद भी नहीं रहेगा । इस प्रकार प्रत्येक जीवनधारी का शरीर और नाम कल्पित है । आज है और कल नहीं रहेगा । 


परमात्मा का कोई भी रूप अथवा नाम शाश्वत होता है । सनातन होता है । परमात्मा के नाम, रूप, लीला और गुण परमात्मा की ही भाँति सत्य, शास्वत और सनातन होते हैं ।


  प्रत्येक जीवनधारी की मृत्यु उसके साथ ही उत्पन्न होती है और हमेशा साथ-साथ ही रहती है । और मौका मिलते ही अपना ग्रास बना लेती है । जैसे अंजली में लिया हुआ जल धीरे-धीरे रिसता हुआ समाप्त हो जाता है, अंजली में कुछ नहीं बचता । इसी तरह समय धीरे-धीरे बीतता जाता है और अंत समय कुछ भी हाथ नहीं आता है । 


   इसलिए जबतक जीवन रहे सावधानी पूर्वक जीवन जीना चाहिए । कल क्या होगा कौन जानता है ? अतः धर्मपूर्वक जीवन जीते हुए सत्य, शाश्वत और सनातन परमात्मा से जुड़कर रहना चाहिए ।  बाकी सब नश्वर है । आज नहीं तो कल नाश को प्राप्त हो ही जाएगा । यही इस संसार की नियति है ।



। जय श्रीराम 

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