नमस्तुभ्यं भगवते विशुद्धज्ञानमूर्तये आत्मारामाय रामाय सीतारामाय वेधसे ।।


नमस्ते राम राजेन्द्र नमः सीतामनोरम नमस्ते चंडकोदण्ड नमस्ते भक्तवत्सल ।।


दीन मलीन हीन जग मोते । रामचंद्र बल जीवत तेते ।।

Thursday, May 18, 2023

माँग और पूर्ति का सिद्धांत भगवान पर लागू नहीं होता है

 

भगवान परम स्वत्रंत हैं । भगवान के ऊपर कोई नियम लागू नहीं होता है । और कोई भी संसारिक नियम तो भगवान पर बिल्कुल लागू नहीं होते । जहाँ संसारिक नियमों की सीमा समाप्त होती है वहीं से भगवान की दिव्यतम सत्ता, लोक-लीला आदि का आरंभ होता है ।

 

 अर्थशास्त्र और वाणिज्य में माँग और पूर्ति का सिद्धांत चलता है । इसके अनुसार जिस चीज अथवा वस्तु की माँग अधिक होती है उसकी कीमत अधिक होती है । और मुश्किल से भी मिल सकती है । लेकिन जिस चीज अथवा वस्तु की माँग कम होती है वह बहुत सस्ती रहती है और आसानी से मिल जाती है ।

 

 इसी सिद्धांत को एकात लोग मूर्खता वश भगवान पर भी आरोपित करते हैं और सोचते, कहते और प्रचारित करते हैं कि कलियुग में भगवान की माँग कम है अर्थात भगवान को चाहने वाले कलियुग में कम हैं । इसलिए कलियुग में भगवान बहुत सस्ते हैं और आसानी से मिल सकते हैं ।

 

  लेकिन यह समझना बहुत जरूरी है कि भगवान बाजार में बिकने वाली न तो कोई चीज अथवा वस्तु हैं और न ही भगवान पहले खरीदने से मिलते थे और न आज ही मिलते हैं । भगवान जैसे पहले थे वैसे आज भी हैं वे सदा एक रस रहते हैं वे समय के साथ बदलते नहीं हैं । इसलिए भगवान की तुलना बाजार में बिकने वाली किसी चीज अथवा वस्तु से करना महा मूर्खता ही है ।

 

  इस प्रकार भगवान पर माँग और पूर्ति का सिद्धांत आरोपित करना ठीक नहीं है । भगवान किसी विशेष प्रयत्न और प्रयास के बस में भी नहीं हैं । भगवान यह करने पर अथवा ऐसा करने पर ही मिलते हैं इन सब बातों का भी कोई विशेष अध्यात्मिक महत्व नहीं है । भगवान केवल और केवल अपनी कृपा से मिलते हैं । भगवान जब कभी किसी से मिलते हैं तो अपनी ओर से ही मिलते हैं अपनी कृपा के बल से मिलते हैं । अतः माँग और पूर्ति सिद्धांत को भगवान पर आरोपित करके न तो स्वयं गुमराह होना चाहिए और न ही दूसरों को गुमराह करना चाहिए ।

 


।। जय श्रीराम ।।


Wednesday, May 10, 2023

पति पत्नी के बीच पाप-पुण्य का विभाजन कब नहीं होता ?


 सनातन धर्म में ऐसा कहा गया है कि पति का आधा पुण्य पत्नी को मिलता है । पति कोई भी पुण्य कार्य करे तो पत्नी को पुण्य का आधा भाग मिल जायेगा ।

 

  इसी तरह पत्नी का किया हुआ आधा पाप पति को मिलता है । अर्थात पत्नी कोई पाप कर्म करे तो उसका आधा पति को मिल जाता है ।

 

लेकिन यह सब तब होता है जब पति-पत्नी एक दूसरे के अनुकूल हों । प्रतिकूल होने पर ऐसा नहीं होता है । प्रतिकूल होने पर केवल अपने किए के अनुसार पाप-पुण्य मिलेगा । आधा का चक्कर नहीं रहेगा ।

 

जैसे पत्नी को लगता है कि ऐसा करने में उसका हित है, कल्याण है और पति राजी नहीं है और पत्नी पति की मर्जी के बिना वैसा करती है तो पति आधे पाप से बच जाएगा । इसी तरह पत्नी आधे पुण्य से वंचित हो जायेगी ।

 

 इस प्रकार आधा का चक्कर अनुकूलता में ही है । प्रतिकूलता में आधा का चक्कर नहीं है । 

 


।। जय श्रीराम ।।

 

Sunday, May 7, 2023

भगवद दर्शन और भगवद प्राप्ति के बाद क्या व्यक्ति डिब्बे ढोता है ?

 

आजकल कई लोग भगवद दर्शन, भगवद प्राप्ति, भगवद लीला में प्रवेश आदि को बहुत हल्का बना दिए हैं । लेकिन भगवद बोध-प्राप्ति इतना सरल नहीं है । खेल नहीं है । भगवद दर्शन, भगवद प्राप्ति और भगवद लीला में प्रवेश ऊँची बात है हल्की बात नहीं है ।

 

 एक प्रश्न है कि यदि किसी को भगवद दर्शन हो जाता है । भगवद प्राप्ति हो जाती है तो क्या व्यक्ति के जीवन में कोई विशेष परिवर्तन नहीं आता है ? क्या भगवद दर्शन और भगवद प्राप्ति के बाद व्यक्ति डिब्बे ढोता है ?

 

  एक संत हैं । जिन्हें लोग कहते हैं कि इन्हें भगवान के दर्शन हो चुके हैं । इनको भगवद प्राप्ति हो चुकी है । इन्हें कुछ पाना शेष नहीं है । अब ये लोगों का कल्याण कर रहे हैं । आदि ।

 

   इनके सत्संग में ज्यादा महिलाएं ही होती हैं और इंही से ये अपनी समस्या भी बताते रहते हैं । जैसे यहाँ से जाने के बाद कभी-कभी सूखी रोटी भी खाकर रहना  पड़ता हैं । और कभी-कभी भूंखे भी रहना पड़ता है । आदि । ऐसा सुनकर महिलाएं द्रवित हो जाती हैं । भावना प्रधान तो होती ही हैं । इसलिए ड्राई फ्रूट के डिब्बे,  मूँगफली, भुना चुरा, लाई, अचार, सिरका, भरा मिर्चा आदि खाने-पीने की चीजें डिब्बे भर-भरकर देती हैं ।

  महाराज जी कभी एक महीने में, कभी पन्द्रह दिन में ही और कभी दो महीने में फिर वापस आ जाते हैं और साथ में सभी खाली डिब्बे वापस लाते हैं, खाली बैग-झोले भी लाते हैं ।

 

 फिर डिब्बे वापस करते हैं और बोलते हैं कि यह डिब्बा इन माता जी का है, यह उन माता जी का है, यह उनका है... आदि । यह झोला इनका है, यह उनका है आदि । यह सिलसिला जारी रहता है ।

 

 अब साधक और संत सुजान स्वयं निर्णय करें कि क्या भगवद दर्शन के बाद, भगवद प्राप्ति के बाद व्यक्ति डिब्बे ढोता है ? जिसको कुछ भी प्राप्त करना शेष नहीं रह जाता क्या वह डिब्बे ढोता है ? क्या वह धाम छोड़कर एक स्थान विशेष, जो कोई तीर्थ भी नहीं है, के लोगों से ही चिपका रहता है ?

 


दर्शन प्राप्ती हो चुकी, लगि लगि कहते कान ।

रामदास करने लगे, औरन का कल्यान ।।

  

बड़े भाग ते मिलत हैं, ऐसे परम सुजान ।

रामदास पहिचानिये, कहते बड़े महान ।।

 

 साधु नहीं इनके सरिस, फँसे सभी मजधार ।

 रामदास ये कहत हैं, वे अइहैं संसार ।।

 

रामदास इनसे जुड़े, दूर कहाँ कल्यान ।

आज नहीं तो कल सही, भेजिहैं राम विमान ।।


रामदास कलिकाल में, अधिक कहाँ सब थोर ।

डिब्बा झोला ढो रहे, यह इनका यह तोर ।।

 


।। जय श्रीराम ।। 

 

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