नमस्तुभ्यं भगवते विशुद्धज्ञानमूर्तये आत्मारामाय रामाय सीतारामाय वेधसे ।।


नमस्ते राम राजेन्द्र नमः सीतामनोरम नमस्ते चंडकोदण्ड नमस्ते भक्तवत्सल ।।


दीन मलीन हीन जग मोते । रामचंद्र बल जीवत तेते ।।

Monday, July 24, 2023

सादर जल लै चरन पखारे

 

जब किसी को लोग श्रद्धा, विश्वास और सम्मान के साथ सुन रहे हों तो वक्ता की यह जिम्मेदारी बन जाती है कि वह अपने मन से अथवा सुनी-सुनाई बातें न कहकर तथ्य पूर्ण प्रमाणिक बातें ही बोले, बताए और कहे ।

 

 लेकिन कुछ लोग अप्रमाणिक बातें भी बताते, बोलते, कहते और सुनाते रहते हैं । जैसे मरने के बाद भी हम लोग खुब सत्संग करेंगे । हम भगवान के यहाँ भी आप लोगों को खुब कथा सुनायेंगे । सुनने वाले ताली बजाते हैं और खुश होते हैं हैं क्योंकि उन्हें भी नहीं पता होता है कि ग्रंथों के अनुसार भगवान के यहाँ कथा होती ही नहीं है ।


इसी तरह एक लोग सुना रहे थे कि इतिहास में अर्थात जबसे सृष्टि बनी तबसे केवल तीन लोगों को भगवान का चरण पखारने का सौभाग्य मिला है । एक व्रह्माजी को, दूसरे जनक जी को और तीसरे केवट जी को । लोग ताली बजा रहे थे ।

 

एक लोग कथा सुनकर आए और बताने लगे कि इतिहास में केवल तीन लोगों को ही भगवान का चरण पखारने का सौभाग्य मिला है । आज बहुत अच्छी कथा हुई है । मेरे गुरूजी ने यह मार्मिक बात बताई है ।

 

 मैंने कहा कि ऐसा नहीं है । कई लोगों को भगवान के चरण पखारने का सौभाग्य मिला है । ये बिचारे क्या करें गुरूजी ने कह रखा है कि गुरू जी की बात में कोई शंका नहीं करनी है । एक बार में ही बात मान लेनी है और किसी भी स्थिति में दोष नहीं देखना है ।

 

मैंने कहा कि श्रीरामचरितमानस जी के अरण्यकाण्ड को देखिए । शवरी जी को भी यह सौभाग्य मिला है-

 

सादर जल लै चरन पखारे । पुनि सुंदर आसन बैठारे ।।

 

 

।। जय श्रीराम ।।

 

 

Tuesday, July 4, 2023

साधक की सोचनीयावस्था

जब कोई व्यक्ति साधना करते हुए आगे बढ़ता है तो कई अवस्थाएँ आती हैं । लेकिन इस कराल कलिकाल में किसी-किसी साधक के जीवन में कुछ विशेष अवस्थायें आ जाती हैं जिसे साधक की सोचनीयावस्था के नाम से जाना जाता है। इस अवस्था का दायरा बहुत विस्तृत है । यहाँ पर कुछ स्थितियों का ही उल्लेख किया जा रहा है । गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज श्रीरामचरितमानस जी में ऐसी ही एक स्थिति की ओर संकेत करते हुए कहते हैं-


बैखानस सोइ सोचै जोगू । तप बिहाय जेहि भावै भोगू 

 

 अन्य अवस्थाएं थोड़ी कठिन हो सकती हैं और कठिनाई से प्राप्त हो सकती हैं । लेकिन सोचनीयावस्था में पहुँचने के लिए कोई विशेष कठिनाई नहीं होती है । बिना किसी विशेष स्थिति अथवा अवस्था में पहुँचे ही उस स्थिति का प्रदर्शन, दिखावा भी साधक की सोचनीयावस्था के अंतर्गत ही आता है ।

 

  जैसे भगवान की लीला में प्रवेश हुए बिना कहना, बताना कि अपना अथवा इनका लीला में प्रवेश हो चुका है । व्रह्म में लीन हुए बिना ही कहना कि मैं अथवा ये तो व्रह्म में लीन रहती हैं । स्त्री-पुरुष का भेद समाप्त हुए बिना ही कहना कि मैं अथवा अमुक स्त्री पुरुष के भेद से ऊपर उठ चुका है । आदि । इसीतरह माला छोड़ देना और कहना की माला की जरूरत नहीं है क्योंकि नाम की प्रतिष्ठा हो चुकी है इत्यादि ।

 

 किसी के जीवन में यह स्थिति अथवा अवस्था न आए तभी बेहतर है । साधक सोचनीयावस्था से बचकर साधना करता रहे इसी में उसकी भलाई होती है ।

 

।। जय श्रीराम ।।

  

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