बचपन में मैंने एक बार अपने गाँव में लोगों को बात करते हुए सुना कि अब्बै तब्बै लाग है । तब उस समय समझ में नहीं आया कि यह है क्या ? किसी को भूत लगते सुना था । किसी को चुड़ैल लगते सुना था । लेकिन अब्बै तब्बै लाग है यह पहली बार सुना था । वास्तव में इसका मतलब था कि एक व्यक्ति जो बीमार था वह अब या तब अर्थात कभी भी मर सकता था । इसी को गाँव की भाषा में अब्बै तब्बै लाग है कहा जा रहा था ।
आज कल प्रेजेंन्टेसन का जमाना है । तरह-तरह के भाषण, मोटीवेशनल भाषण-व्याख्यान,
अथवा अध्यात्मिक प्रवचन आदि में प्रेजेंन्टेसन का बहुत महत्व है । इससे लोग बहुत प्रभावित होते हैं ।
आजकल कुछ लोग भगवद प्राप्ति
और भगवद दर्शन होने आदि को इस तरह प्रेजेंन्ट करते हैं कि सुनने वालों को लगता है
कि इनको तो हो चुका है और बस हम लोगों की बारी है । और बारी क्या है ऐसा लगने लगता
है कि अब्बै तब्बै
लाग है । भगवान अब मिले कि
तब । दर्शन अब हुआ कि तब ।
ऐसे ही एक संत को देख-सुनकर कुछ महिलाओं को लगने लगा कि अब्बै तब्बै लाग है । एक व्यक्ति ने उनमें से एक को पूछा कि आप तो कह रही थीं कि इन महाराज जी की कथा यदि लगातार नौ-दस दिन सुन लूँ तो भगवान के दर्शन हो जायेंगे । लेकिन तब से आप ने बहुत सुना । दो-दो महीने-डेढ़ महीने लगातार सुना लेकिन दर्शन हुए क्या ? तब वह बोली कि अब तक हो जाते लेकिन तुम्हारी वजह से नहीं हो रहे हैं क्योंकि तुम बीच-बीच में प्रश्न खड़ा कर देते हो । प्रेजेंन्टेसन से माइंड वाश हो जाने पर ऐसा ही होता है ।
उसकी बात से यही लग रहा था कि भले अब तक दर्शन नहीं हुए लेकिन अब्बै तब्बै लाग है -
रामदास इनसे जुड़े दूर कहाँ कल्यान ।
आज नहीं तो कल सही भेजिहैं राम विमान ।।
।। जय श्रीराम ।।