नमस्तुभ्यं भगवते विशुद्धज्ञानमूर्तये आत्मारामाय रामाय सीतारामाय वेधसे ।।


नमस्ते राम राजेन्द्र नमः सीतामनोरम नमस्ते चंडकोदण्ड नमस्ते भक्तवत्सल ।।


दीन मलीन हीन जग मोते । रामचंद्र बल जीवत तेते ।।

Monday, August 7, 2023

साधुता और वेश: वेश गौण और साधुता प्रधान होती है

 

जिसका वेश साधु का हो वह साधु हो भी यह जरूरी नहीं होता है । इसी तरह यदि किसी का वेश साधु का नहीं है तो वह असाधु हो यह भी जरूरी नहीं है । यदि वेश और साधुता दोनों एक साथ हो तो फिर कहना ही क्या है । इससे उत्तम और क्या हो सकता है । 

 

 साधू होने के लिए वेश प्रधान नहीं है साधुता प्रधान है । जिसके आचरण में साधुता है वह साधु है चाहे उसका वेश कुछ भी हो । इस सम्बंध में कुछ शास्त्रीय प्रमाण दे रहे हैं ।

 

  त्रिवेणीजी श्रीरामचरितमानस जी के अयोध्याकाण्ड में भरत जी से कहते हैं कि के हे तात भरत तुम सब बिधि साधू हो । अर्थात तुम पूर्णतया-सब प्रकार से साधू हो- ‘तात भरत तुम्ह सब बिधि साधू । राम चरन अनुराग अगाधू’ ।। लेकिन यहाँ यह बड़ी ध्यान देने वाली बात है कि जब भरत जी भरद्वाजजी से मिले थे, संगम-त्रिवेणी जी गए थे तो उस समय उनका वेश साधु का नहीं था-‘वेष न सो सखि सीय न संगा । आगे अनी चली चतुरंगा’ ।। इससे यह सिद्ध हो जाता है कि साधू होने के लिए वेश गौण और साधुता ही प्रधान है ।

 

 गोस्वामी जी ने कहा भी है कि जामवंतजी और हनुमानजी को साधु का सम्मान मिला है जबकि उनका वेश साधु का नहीं था । क्योंकि जामवंत जी और हनुमानजी में साधुता थी- कियेहु कुवेष साधु सनमानू । जिमि जग जामवंत हनुमानू ।।

 

वहीं दूसरी ओर जो ठग हैं लेकिन वेश अच्छा बना लेते हैं तो कुछ दिन उनकी भी पूजा होती है । यह वेश के प्रभाव से होता है- ‘लखि सुवेष जग बंचक जेऊ । वेश प्रताप पूजिअहिं तेऊ’ ।। गोस्वामी जी कहते हैं कि भले और बुरे का भेद जरूर खुलता है । जैसे रावण, कालनेमि और राहु का भेद भी अंततः खुल गया था । रावण और कालनेमि ने साधु का वेश तो बना लिया लेकिन उनमें साधुता नहीं थी । रावण और कालनेमि का अंततः भेद खुल गया- ‘उघरहिं अंत न होइ निवाहू । कालनेमि जिमि रावन राहू’ ।।

 

इतना ही नहीं पहले हनुमानजी ने कालनेमि का सम्मान किया क्योंकि उसने वेश साधु का बना रखा था । लेकिन जब हनुमान जी को पता चला कि इसका वेश तो साधु का है लेकिन यह साधु नहीं है तब क्या किया- ‘सिर लंगूर लपेटि पिछारा’

 

  इस प्रकार साधू होने के लिए वेश गौण और साधुता प्रधान है । और यदि भेद खुल जाय तो फिर किनारा कर लेना चाहिए । क्योंकि हनुमान जी ने भी यही किया था । वे समर्थ थे तो उन्होंने कालनेमि को दण्ड भी दिया । लेकिन हम लोगों को किनारा कर लेना चाहिए । इतनी शिक्षा तो लेनी ही चाहिए ।

 

 

।। जय हनुमान जी की ।।

 

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