एक संत श्रोताओं को उपदेश देते हुए कह रहे थे कि विवाह के बाद बेटियों से सभी सम्बन्ध समाप्त कर देना चाहिए |
वह मरे अथवा जिये इससे कोई मतलब नहीं होना चाहिए | विवाह कर दिया बस फिर कोई मतलब नहीं |
जब साधु, संत, कथा वाचक ही ऐसी बात करने लगेंगे तो और कोई क्या कर सकता है | जिसको सदराह दिखाना चाहिए वही गुमराह करने लगे तो देश समाज का पतन नहीं तो और क्या होगा ?
रामदास कलिकाल में, मति जाती है रूठ |
ठूठे को समुझत हरा, हरे पेड़ को ठूठ ||
|| जय श्रीराम ||
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