जिसके माध्यम से सत्संग मिल रहा होता है उसका स्तर क्या है ? इस बात का अधिक महत्व होता है ।
लंका में लंकिनी नाम की एक दुष्ट राक्षसी रहती थी । उसे लंका की रक्षा का काम मिला हुआ था । हनुमानजी महराज के सत्संग से राक्षसी लंकिनी का भी विवेक जागृत हो गया । और उसे स्वर्ग और मोक्ष के सुख की अपेक्षा हृदय में कोशलपुर के राजा रामजी को हृदय में धारण करने का सुख श्रेष्ठत लगने लगा था ।
इसप्रकार कहा जा सकता है कि सत्संग में श्रोता और वक्ता दोनों का
स्तर महत्वपूर्ण होता है लेकिन इस घटना से पता चलता है कि वक्ता का स्तर श्रेष्ठ
होना ज्यादा जरूरी है । और जब वक्ता में हनुमानजी महाराज जी के कोटि की साधुता और भक्ति होगी तभी सत्संग में स्वर्ग और मोक्ष के सुख से अधिक सुख मिलने की बात सत्य और सार्थक होगी
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