बसौ मेरे नयनन में रघुवीर ।
रूप अनूप मदन लखि लाजै, सुंदर श्याम शरीर ।।१।।
अंग अंग सुभग मनोहर चितवन, सुंदर धनु कर तीर ।
बालोचित पट सोहत नीके, भूषण लसत तुणीर ।।२।।
मंद मंद मुस्कान सुशोभित, नाभी रुचिर गंभीर ।
भूपति मगन मुदित सब रानी, निरखत जन मन हीर ।।३।।
चारों भ्रात सखा संग सोहत, सकल सुभग वर वीर ।
अवध बीथिन बिच विचरत रघुवर, खेलत सरजू तीर ।।४।।
सुर नर मुनि निरखत सुख पावत, मुदित सकल मतिधीर ।
दीन संतोष ओर प्रभु देखो, धारो कर मम सीर ।।५।।
।। जय रघुवीर ।।
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