दस छोड़ा तौ सौ मिले, छुटा नहीं संसार ।
रामदास चलता रहा, राग द्वेष व्यवहार ।।
हाथ लगाते अब नहीं, रुपया पैसा दाम ।
नारी को छूते नहीं, त्याग बड़ा है काम ।।
रामदास जो जुड़ गए, सोइ जुटावैं दाम ।
बिनु पैसा नहिं होय जग, जो मन आवै काम ।।
आवक जावक होत बहु, लगा रहे दरबार ।
यहि कीजे तो हरि मिलैं, छूट जाय संसार ।।
जग रीझै तो सब मिलै, मान बड़ाई दाम ।
रामदास हरि ना मिलैं, भोजन भूरि प्रणाम ।।
जग रीझा तो क्या हुआ, रीझे नहिं जो राम ।
रामदास केहि लगि तजे, घर घरनी धन धाम ।।
माया मय संसार है, फँसत लगै नहिं बार ।
फँसे कँहै वे फँसि गए, नहीं लगैंगे पार ।।
एक आस रघुवीर की, समरथ परम उदार ।
रामदास चित कीजिए, रामचंद्र सरकार ।।
।। जय श्रीराम ।।
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