नमस्तुभ्यं भगवते विशुद्धज्ञानमूर्तये आत्मारामाय रामाय सीतारामाय वेधसे ।।


नमस्ते राम राजेन्द्र नमः सीतामनोरम नमस्ते चंडकोदण्ड नमस्ते भक्तवत्सल ।।


दीन मलीन हीन जग मोते । रामचंद्र बल जीवत तेते ।।

Monday, June 1, 2020

सनातन धर्म- शास्वत बड़ा पुरातन है


सनातन धर्म अनादि धर्म है । इसका न आदि है न अंत है । अर्थात सनातन धर्म आदि-अंत रहित शास्वत धर्म है । इसका कभी अंत नहीं होता और यह हमेशा चलता ही रहता है । इसलिए ही इसे सत्य सनातन धर्म कहा जाता है-

आर्य धर्म है वही जिसे हम कहते धर्म सनातन है ।
युग युग से ही चलता आये शाश्वत बड़ा पुरातन है ।।
वेदपुराणशास्त्ररामायणउपनिषद में जिसका वर्णन है 
जो समझ सके कुछ तथ्यों को बस जाता उसका ही मन है ।।


  वेद वर्णित धर्म ही सनातन धर्म है । वेद, पुराण उपनिषद और रामायण आदि में जिस धर्म का वर्णन है वह सनातन धर्म है । इसे ही हिंदू धर्म और आर्य धर्म भी कहा जाता है ।

सनातन धर्म संसार का सबसे प्राचीनतम धर्म है । यह समस्त विश्व के कल्याण की और सर्वत्र शांति और प्राणीमात्र के सुख की कामना करने वाला धर्म है ।

जिस धर्म को कोई शुरू करता है उसे उस धर्म का प्रवर्तक कहा जाता है । प्रवर्तक के पहले उस धर्म का, जिसे प्रवर्तक शुरू करता है, अस्तित्व नहीं रहता है । लेकिन सनातनधर्म सदा चलता ही रहता है इसलिए इसका कोई प्रवर्तक नहीं है । सनातन धर्म भगवत स्वरूप ही है ।


सनातन धर्म के अनुसार जब-जब धरती पर अधर्म-पाप बहुत अधिक बढ़ जाता है तब भगवान स्वयं अवतार लेकर प्रकट होते हैं । और अधर्म-पाप को मिटाकर सनातन धर्म की रक्षा करते हैं ।


 सनातन धर्म मानवता को पुष्ट करने वाला धर्म है जब धरती पर राक्षसत्व बढ़ता है तब सनातन धर्म पर संकट आ जाता है क्योंकि इससे अधर्म और पाप बढ़ जाते हैं सनातन धर्म में भगवान का अवतार धर्म को बचाने के लिए होता है-


अधर्म-पाप जब-जब धरती पे बहुत अधिक बढ़ जाते हैं 
तब-तब धर्म की रक्षा को भगवान धरा पे आते हैं ।।
भगवान धरापे आकरके कुछ और नहीं दिखलाते हैं 
इनके आने के पहले भीजो धर्म उसीको बचाते हैं ।।
राक्षसत्व मिटाके धरती से सबको शुभ राह दिखाते हैं 
कुछ और नहीं यह आर्य-धर्म जिसकी हम गाथा गाते हैं ।।

इस प्रकार सनातन धर्म आदि, अंत रहित शास्वत धर्म है । इसका कोई प्रवर्तक नहीं है । यह बहुत ही प्राचीनतम धर्म है जो सदा चलता ही रहता है । इसे आर्य धर्म और हिंदू धर्म भी कहा जाता है । धरती पर जब-जब अधर्म और पाप अधिक बढ़ जाते हैं तब भगवान स्वयं अवतार लेकर अधर्म और पापको मिटाकरके सनातन धर्म की रक्षा करते है । जिससे संसार में सुख और शांति का समावेश हो जाता है । और मानवता पुष्ट हो जाती है तथा राक्षसत्व का अंत हो जाता है ।

। जय श्रीराम 

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