नमस्तुभ्यं भगवते विशुद्धज्ञानमूर्तये आत्मारामाय रामाय सीतारामाय वेधसे ।।


नमस्ते राम राजेन्द्र नमः सीतामनोरम नमस्ते चंडकोदण्ड नमस्ते भक्तवत्सल ।।


दीन मलीन हीन जग मोते । रामचंद्र बल जीवत तेते ।।

Sunday, April 2, 2023

आश्रित जन- भक्त के लक्षण


कई लोग ऐसा बोलते हैं अथवा बोल देते हैं कि हम तो भगवान के आश्रित हैं । लेकिन ऐसा बोल तो देते हैं लेकिन कहीं न कहीं संसार का ही आश्रय लिए होते हैं । 


  किसी को शिष्य का आश्रय, किसी को अपने प्रेमी जन का, किसी को मित्र का, किसी को पुत्र का, किसी को धन का और किसी को बल आदि का आश्रय होता है । और यह बात भगवान को बिल्कुल पसंद नहीं आती है कि कहलाये उनका दास और आश्रय लिए रहे संसार का –


मोर दास कहाइ नर आसा । करय तौ कहहु कहा बिस्वासा ।।

 

ऐसे में यह प्रश्न उठता है कि आश्रित भक्त कौन होता है ? इनके लक्षण क्या होते हैं ? आश्रित भक्त का योग-क्षेम भगवान वहन करते हैं । यह कहना कि हम भगवान के आश्रित हैं, बहुत आसान होता है । मुँह से बोलने में क्या जाता है ? लेकिन वास्तव में भगवान के आश्रित होना आसान नहीं होता है । और यदि कोई वास्तव में भगवान के आश्रित हो जाए तो उसकी रखवारी भगवान स्वयं करने लगते हैं-


करउँ सदा तिन कर रखवारी । जिमि बालक राखय महतारी ।।

 

निम्नलिखित दोहों के माध्यम से आश्रित भक्त के लक्षण को समझाया गया है-

 

एक आस रघुवीर की, दूजी आस न होय ।

बल संबल अवलंब नहिं, राम सिवा जग कोय ।।

 

राम राम रघुपति रटे, गुन गावै मन लाय ।

रामदास आश्रित सुजन,  विरला ही कहलाय ।।

 

।। जय श्रीराम ।।

 

 

No comments:

Post a Comment

इस पोस्ट पर अपनी टिप्पणी दें

लोकप्रिय पोस्ट