जो मूढ़ मेरे भक्त की निंदा करता है, वह मुझ देवाधि भगवान की ही निंदा में रत है । जो भक्तिभाव से भक्त का पूजन करता है, वह सदा मेरी ही पूजा में लगा हुआ है ।
यहाँ यह ध्यान देने योग्य है कि रामजी हनुमानजी से कहते -
जो मेरी आराधना के निमित्त से मुझे पत्र-पुष्प, फल और जल
अर्पित करता है तथा मन और इन्द्रियों को काबू में रखता है, वह मेरा भक्त माना गया
है ।
।। जय श्रीराम ।।
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