जहाँ एक ओर कथा-प्रवचन और कीर्तन के दौरान कुछ पद और चौपाई पर विशेष जोर दिया जाता है वहीं दूसरी ओर कुछ की बिल्कुल उपेक्षा कर दी जाती है । उदाहरण के लिए जिनका बहुतायत गायन होता है और जिनको कीर्तन में भी सम्मिलित किया जाता है उनमें से कुछ चौपाई और पद निम्नवत हैं - (१) ‘अब मोहिं भा भरोस हनुमंता । बिनु हरि कृपा मिलहिं नहिं संता’ ।। (२) ‘प्रथम भगति संतन कर संगा’ । (३) ‘जब द्रवहिं दीनदयाल राघव साधु संगति पाइए’ ।
कई कथा वाचक और संत उपरोक्त चौपाई व पद पर बहुत जोर
देते हैं और जोर देकर समझाते भी हैं जिससे सुनने वालों को समझ में आ जाए कि उन पर
भगवान की कृपा हो चुकी है तभी ये हम लोगों को मिले हैं और कथा सुना रहे हैं ।
इसका प्रभाव यह होता है कि कई भोले-भाले लोग कथा वाचक का संग करने लगते हैं अर्थात
उनके साथ लग जाते है । अथवा साथ के लिए लालायित रहते हैं या रहने लगते हैं ।
लेकिन कुछ पद और चौपाई ऐसी हैं जिनकी प्रायः उपेक्षा
कर दी जाती है । इनकी ओर किसी का ध्यान ही नहीं जाता । इनमें से कुछ निम्नवत हैं- (१) ‘संत बिसुद्ध
मिलहिं परि तेही । चितवहिं राम कृपा करि जेही’ ।। (२) ‘भव सरिता को नाव सुद्ध संतन
के चरण’ ।
इस प्रकार कथा-प्रवचन और कीर्तन में लोग भले ही उपेक्षा कर दें लेकिन शुद्धता का बहुत महत्व है । कोई समझे अथवा न समझे, माने अथवा न माने लेकिन जिन चौपाईयों और पदों पर विशेष जोर दिया जाता है उनमे भी संत का मतलब विशुद्ध संत ही है । क्योंकि विशुद्ध संतों से ही लोक और परलोक बन सकता है ।