।। श्रीसीतारामाभ्याम नमः ।।
तेरे ही बल पे मैं हूँ मेरे स्वामी ।
तेरी शरन में है तेरा अनुगामी ।।
यद्यपि मैं लोभी क्रोधी हूँ कामी ।
तुझसे छुपा क्या तूँ अंतरजामी ।।
जैसा भी हूँ चाहे जितनी भी खामी ।
तेरे सिवा है दूजा न स्वामी ।।
कौड़ी नहीं मोल नमकहरामी ।
बनाते हो रघुवर उसको भी दामी ।।
मुझसा नहीं दीन तुझसा न नामी ।
संतोष मन तो कुमगों का गामी ।।
सुनिए अरज अब कण-कण के धामी ।
जैसा भी मेरा, तूँ भर दीजे हामी ।।
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