नमस्तुभ्यं भगवते विशुद्धज्ञानमूर्तये आत्मारामाय रामाय सीतारामाय वेधसे ।।


नमस्ते राम राजेन्द्र नमः सीतामनोरम नमस्ते चंडकोदण्ड नमस्ते भक्तवत्सल ।।


दीन मलीन हीन जग मोते । रामचंद्र बल जीवत तेते ।।

Sunday, November 3, 2024

समता में आ जाओ- घर मत बनवाओ

 

आजकल कई लोग बिना समुचित ज्ञान के, बिना समुचित अध्ययन और अनुभव के ही कथा कहने लग जाते हैं । कुछ साधु-संत भी इसी श्रेणी में आते हैं और कथा कहते हैं ।

 

ऐसे लोग समझते हैं अथवा उनको लगता है कि वे कुछ भी बोल सकते हैं । क्योंकि ये सामने वाले को मूर्ख समझते हैं । अथवा जान-बूझकर मूर्ख बनाते हैं ।

 

   एक लोग कथा कहते हुए लोगों को समता में आने का उपदेश दे रहे थे । कह रहे थे कि बस समता में आ जाओ । समता में आने से भगवद प्राप्ति हो जायेगी । जीवन-मरण के चक्र से निकलने के लिए समता में आना है । उदाहरण देकर समझा रहे थे कि आप अपने बच्चे को ही साथ में क्यों रखते हो । दूसरे के बच्चे को क्यों नहीं । अपने बच्चे को कपड़ा दिलाते हो दूसरेके क्यों नहीं । आदि ।

 

   सीधे-साधे लोग कह रहे थे कि अब बस समता में आ जाना है तो भगवान के दर्शन हो जाएँगे । उनको क्या पता कि समता में आना कोई खेल नहीं है ? न ही केवल कहने मात्र से कोई समता में आ जाता है ।

 

वही कथावाचक एक दिन कह रहे थे कि जिनका घर नहीं बना है वे लोग मेरा कहना माने तो घर न बनवाएं । और वे स्वयं जिस घर में जिसे वे कुटिया कहते थे उसे छोड़कर दूसरी नव निर्मित कुटिया में आ गए । बोले कि भक्त की इच्छा थी बनवा दिए तो अब नई कुटिया में रहेंगे-तीन चार कमरे का घर होगा ।

 

  वही कथा वाचक दूसरे दिन भगवान राम को छोटा और भगवान कृष्ण को बड़ा बता रहे थे । बोल रहे थे कि भगवान राम की भक्ति में पूर्णता नहीं मिलेगी । भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में ही पूर्णता मिलेगी । आदि । जो लोग रामजी की भक्ति करते हैं वे बाद में कृष्ण जी की भक्ति करने लगते हैं । इन्हें कौन बताए कि सूरदास जी जो भगवान कृष्ण की भक्ति करते थे कई सौ पदों में भगवान राम की लीलाओं का गायन किया है ।

 

 ऐसे लोग जो स्वयं एक घर को छोड़कर पास में दूसरे नये घर में रहने का मन बना लेते हैं वे दूसरों को घर न बनवाने का उपदेश देते हैं । और जो वेद अनुमोदित भगवान के दो स्वरूपों को भी एक नहीं मान पाते ऐसे लोग भी लोगों को समता में आने का उपदेश देते हैं । इससे बड़ी बिडम्बना और क्या होगी ?

 

।। जय श्रीराम ।।

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