आजकल कई लोग बिना समुचित ज्ञान के, बिना समुचित अध्ययन और
अनुभव के ही कथा कहने लग जाते हैं । कुछ साधु-संत भी इसी श्रेणी में आते हैं और
कथा कहते हैं ।
ऐसे लोग समझते हैं अथवा उनको लगता है कि वे कुछ भी बोल सकते
हैं । क्योंकि ये सामने वाले को मूर्ख समझते हैं । अथवा जान-बूझकर मूर्ख बनाते हैं
।
एक लोग कथा कहते हुए
लोगों को समता में आने का उपदेश दे रहे थे । कह रहे थे कि बस समता में आ जाओ ।
समता में आने से भगवद प्राप्ति हो जायेगी । जीवन-मरण के चक्र से निकलने के लिए
समता में आना है । उदाहरण देकर समझा रहे थे कि आप अपने बच्चे को ही साथ में क्यों
रखते हो । दूसरे के बच्चे को क्यों नहीं । अपने बच्चे को कपड़ा दिलाते हो दूसरेके
क्यों नहीं । आदि ।
सीधे-साधे लोग कह
रहे थे कि अब बस समता में आ जाना है तो भगवान के दर्शन हो जाएँगे । उनको क्या पता
कि समता में आना कोई खेल नहीं है ? न ही केवल कहने मात्र से कोई समता में आ जाता
है ।
वही कथावाचक एक दिन कह रहे थे कि जिनका घर नहीं बना है वे लोग मेरा
कहना माने तो घर न बनवाएं । और वे स्वयं जिस घर में जिसे वे कुटिया कहते थे उसे
छोड़कर दूसरी नव निर्मित कुटिया में आ गए । बोले कि भक्त की इच्छा थी बनवा दिए तो
अब नई कुटिया में रहेंगे-तीन चार कमरे का घर होगा ।
वही कथा वाचक दूसरे
दिन भगवान राम को छोटा और भगवान कृष्ण को बड़ा बता रहे थे । बोल रहे थे कि भगवान
राम की भक्ति में पूर्णता नहीं मिलेगी । भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में ही पूर्णता
मिलेगी । आदि । जो लोग रामजी की भक्ति करते हैं वे बाद में कृष्ण जी की भक्ति करने
लगते हैं । इन्हें कौन बताए कि सूरदास जी जो भगवान कृष्ण की भक्ति करते थे कई सौ
पदों में भगवान राम की लीलाओं का गायन किया है ।
ऐसे लोग जो स्वयं एक
घर को छोड़कर पास में दूसरे नये घर में रहने का मन बना लेते हैं वे दूसरों को घर न
बनवाने का उपदेश देते हैं । और जो वेद अनुमोदित भगवान के दो स्वरूपों को भी एक नहीं
मान पाते ऐसे लोग भी लोगों को समता में आने का उपदेश देते हैं । इससे बड़ी बिडम्बना
और क्या होगी ?
।। जय श्रीराम ।।