सनातन धर्म के सूर्य देव प्रत्यक्ष देवता हैं । इन्हें सूर्य नारायण भी कहा जाता है । इनकी बड़ी महिमा है । वेद-पुराण, रामायण, महाभारत, श्रीरामचरितमानस आदि में सूर्य देव का वर्णन है । ग्रंथों में इनकी महिमा मुक्तकंठ से गाई गई है ।
सनातन
धर्म के पंच देवताओं में से सूर्य देव भी एक देवता हैं । सनातन धर्म में सूर्योपासना
का महत्वपूर्ण स्थान है । सूर्य देव को प्रातःकाल जल अर्पण किया जाता है और इसका
अनुपम लाभ भी होता है ।
सूर्य
देव प्रत्येक प्राणी, वनस्पति आदि के लिए जीवनदाई हैं । सूर्य के बिना जीवन की
कल्पना तक नहीं की जा सकती है । कोई भी व्यक्ति वो चाहे जिस देश अथवा धर्म का हो
सूर्य देव सबको प्रकाश देते हैं । बिना भेदभाव के सबका कल्याण करते हैं । सूर्य
देव सनातन हैं । आदि काल से हैं । और सनातन धर्म के पूजनीय देवता है ।
सामान्यतयाः बोलचाल की भाषा में हम लोग कहते हैं कि सूर्य का उदय पूरब दिशा
में होता है । और सूर्य पश्चिम दिशा में अस्त होता है । लेकिन सनातन धर्म के
अनुसार सूर्य का न उदय होता है और न अस्त । अर्थात सूर्य देव हमेशा उदित ही रहते
हैं । इस तथ्य का वर्णन पुराणों में मिलता है ।
सूर्यदेव की निम्नलिखित स्तुति बड़ी ही सुंदर है और यह श्रीविनयपत्रिका जी से ली गई है । इसमें सूर्य देवता की महिमा का वर्णन है-
दीनदयाल
दिवाकर देवा । कर मुनि मनुज सुरासुर सेवा ।।
हिम तम कर केहरि करमाली ।
दहन दोष दुख दुरित रुजाली ।।
कोक
कोकनद लोक प्रकाशी । तेज प्रताप रूप रस राशी ।।
सारथि पंगु दिव्य रथ गामी
। हरि शंकर बिधि मूरति स्वामी ।।
वेद पुराण प्रगट जश जागे ।
तुलसी राम भगति वर माँगे ।।
सूर्य
नारायण में व्रह्माजी, विष्णुजी और शंकरजी सबके दर्शन होते हैं । अर्थात सूर्य
नारायण व्रह्माजी, विष्णुजी और शंकरजी मय हैं ।
इसी तरह
ग्रंथों में कहा गया कि सूर्य मंडल में भगवान श्रीसीताराम स्थित हैं । इसका वर्णन सनत्कुमारसंहिता
आदि ग्रंथों में मिलता है ।
कुलमिलाकर
सूर्य देवता सनातन धर्म के पूजनीय देवता हैं । और पत्येक सनातन धर्मी को सूर्य
पूजन करनी चाहिए । श्रीवाल्मीकि रामायण में आदित्य ह्रदय स्तोत्र का वर्णन है जिसके पाठ से सूर्य
देव की प्रसन्नता, निरोगता और शत्रु पर विजय आदि प्राप्त होती है ।
।। जय श्रीसूर्य नारायण ।।
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