कृष्ण रूप प्रगटे रघुराई ।
दशरथ कौशल्या मन भावन बालकेलि सुख पाई ।।१।।
वीरसेन रत्नालका देवी सोइ सुख हित मन लाई ।
भगति प्रेम सेवा तप कीन्हें दम्पति अति हर्षाई ।।२।।
परमोदार राम प्रभु प्रगटे बोले गिरा सुहाई ।
द्वापर नन्द यशोदा बनिहौ गोकुल गाँव रहाई ।।३।।
तब शिशु रूप प्रगट होइ रहिहौं माता-पिता बनाई ।
ग्यारह बरष बाल सुख दैहों बसौ अमरपुर जाई ।।४।।
धरा द्रोण बसु बने अमरपुर पुनि जन्में जब आई ।
रघुवर कृष्ण रूप तब जनमें घर-घर मोद बधाई ।।५।।
दीन संतोष देवकीनन्दन गए यहि रूप समाई ।
कृष्णचंद्र निज जन मन राखे चरित किए सुखदाई ।।६।।
।। श्रीकृष्णचंद्र भगवान की जय ।।
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