भगवान परम स्वत्रंत हैं । भगवान के ऊपर कोई नियम लागू नहीं होता है । और कोई भी संसारिक नियम तो भगवान पर बिल्कुल लागू नहीं होते । जहाँ संसारिक नियमों की सीमा समाप्त होती है वहीं से भगवान की दिव्यतम सत्ता, लोक-लीला आदि का आरंभ होता है ।
अर्थशास्त्र और
वाणिज्य में माँग और पूर्ति का सिद्धांत चलता है । इसके अनुसार जिस चीज अथवा वस्तु
की माँग अधिक होती है उसकी कीमत अधिक होती है । और मुश्किल से भी मिल सकती है ।
लेकिन जिस चीज अथवा वस्तु की माँग कम होती है वह बहुत सस्ती रहती है और आसानी से
मिल जाती है ।
इसी सिद्धांत को एकात
लोग मूर्खता वश भगवान पर भी आरोपित करते हैं और सोचते, कहते और प्रचारित करते हैं
कि कलियुग में भगवान की माँग कम है अर्थात भगवान को चाहने वाले कलियुग में कम हैं ।
इसलिए कलियुग में भगवान बहुत सस्ते हैं और आसानी से मिल सकते हैं ।
लेकिन यह समझना बहुत
जरूरी है कि भगवान बाजार में बिकने वाली न तो कोई चीज अथवा वस्तु हैं और न ही भगवान
पहले खरीदने से मिलते थे और न आज ही मिलते हैं । भगवान जैसे पहले थे वैसे आज भी
हैं वे सदा एक रस रहते हैं वे समय के साथ बदलते नहीं हैं । इसलिए भगवान की तुलना
बाजार में बिकने वाली किसी चीज अथवा वस्तु से करना महा मूर्खता ही है ।
इस प्रकार भगवान पर
माँग और पूर्ति का सिद्धांत आरोपित करना ठीक नहीं है । भगवान किसी विशेष प्रयत्न
और प्रयास के बस में भी नहीं हैं । भगवान यह करने पर अथवा ऐसा करने पर ही मिलते
हैं इन सब बातों का भी कोई विशेष अध्यात्मिक महत्व नहीं है । भगवान केवल और केवल
अपनी कृपा से मिलते हैं । भगवान जब कभी किसी से मिलते हैं तो अपनी ओर से ही मिलते
हैं अपनी कृपा के बल से मिलते हैं । अतः माँग और पूर्ति सिद्धांत को भगवान पर
आरोपित करके न तो स्वयं गुमराह होना चाहिए और न ही दूसरों को गुमराह करना चाहिए ।
।। जय श्रीराम ।।
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