आजकल कई लोग भगवद दर्शन, भगवद प्राप्ति, भगवद लीला में प्रवेश
आदि को बहुत हल्का बना दिए हैं । लेकिन भगवद बोध-प्राप्ति इतना सरल नहीं है । खेल
नहीं है । भगवद दर्शन, भगवद प्राप्ति और भगवद लीला में प्रवेश ऊँची बात है हल्की
बात नहीं है ।
एक प्रश्न है कि यदि
किसी को भगवद दर्शन हो जाता है । भगवद प्राप्ति हो जाती है तो क्या व्यक्ति के
जीवन में कोई विशेष परिवर्तन नहीं आता है ? क्या भगवद दर्शन और भगवद प्राप्ति के
बाद व्यक्ति डिब्बे ढोता है ?
एक संत हैं । जिन्हें
लोग कहते हैं कि इन्हें भगवान के दर्शन हो चुके हैं । इनको भगवद प्राप्ति हो चुकी
है । इन्हें कुछ पाना शेष नहीं है । अब ये लोगों का कल्याण कर रहे हैं । आदि ।
इनके सत्संग में
ज्यादा महिलाएं ही होती हैं और इंही से ये अपनी समस्या भी बताते रहते हैं । जैसे
यहाँ से जाने के बाद कभी-कभी सूखी रोटी भी खाकर रहना पड़ता हैं । और कभी-कभी भूंखे भी रहना पड़ता है । आदि
। ऐसा सुनकर महिलाएं द्रवित हो जाती हैं । भावना प्रधान तो होती ही हैं । इसलिए ड्राई
फ्रूट के डिब्बे, मूँगफली, भुना चुरा,
लाई, अचार, सिरका, भरा मिर्चा आदि खाने-पीने की चीजें डिब्बे भर-भरकर देती हैं ।
महाराज जी कभी एक
महीने में, कभी पन्द्रह दिन में ही और कभी दो महीने में फिर वापस आ जाते हैं और
साथ में सभी खाली डिब्बे वापस लाते हैं, खाली बैग-झोले भी लाते हैं ।
फिर डिब्बे वापस करते
हैं और बोलते हैं कि यह डिब्बा इन माता जी का है, यह उन माता जी का है, यह उनका है...
आदि । यह झोला इनका है, यह उनका है आदि । यह सिलसिला जारी रहता है ।
अब साधक और संत सुजान स्वयं निर्णय करें कि क्या भगवद दर्शन के बाद, भगवद प्राप्ति के बाद व्यक्ति डिब्बे ढोता है ? जिसको कुछ भी प्राप्त करना शेष नहीं रह जाता क्या वह डिब्बे ढोता है ? क्या वह धाम छोड़कर एक स्थान विशेष, जो कोई तीर्थ भी नहीं है, के लोगों से ही चिपका रहता है ?
दर्शन प्राप्ती हो चुकी, लगि लगि कहते
कान ।
रामदास करने लगे, औरन का कल्यान ।।
बड़े भाग ते मिलत हैं, ऐसे परम सुजान ।
रामदास पहिचानिये, कहते बड़े महान ।।
साधु नहीं इनके सरिस, फँसे सभी मजधार ।
रामदास ये कहत हैं, वे अइहैं संसार ।।
रामदास इनसे जुड़े, दूर कहाँ कल्यान ।
आज नहीं तो कल सही, भेजिहैं राम विमान
।।
रामदास कलिकाल में, अधिक कहाँ सब थोर ।
डिब्बा झोला ढो रहे, यह इनका यह तोर ।।
।। जय श्रीराम ।।
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