द्रवउ राघव दीनदयाल ।
महोदार प्रभु रघुकुलभूषण दीन हीन सरनागत
पाल ।।१।।
दीन मलीन हीन सब बिधि प्रभु मन मति उल्टी चाल ।
जानन सुननहार नहिं कोई तुम बिनु सहज
कृपाल ।।२।।
नहिं निज बल नहिं पर बल स्वामी तव बल
विरद विशाल ।
साधन बल भी नहिं कछु मोरे दीनन के
प्रतिपाल ।।३।।
सुग्रीव विभीषन आदिक राखेउ कृपा किए
तत्काल ।
दीन संतोष बेर जनु भूलेउ गुन गन दशरथ
लाल ।।४।।
।। जय श्रीराम ।।