पहले के समय में समुचित तरीके से अध्ययन के बाद बोध-ज्ञान
प्राप्त होने पर आचरण में-अनुभव व व्यवहार में आ जाने पर लोग ज्ञान की बात दूसरों
को बताते थे । कथा कहते थे । लेकिन आज के समय में थोड़ा बहुत पढ़ लिया । थोड़ा
संस्कृत सीख लिया बस लोग ज्ञानी बन जाते हैं और कथा कहने लग जाते हैं ।
कुछ लोग बताते हैं कि
आज कल दो महीने में कथा कहना सीखें, दो महीने में संस्कृत सीखे आदि के कोर्से चल
रहे हैं । और लोग इस तरह से ट्रेनिंग लेकर कथा कह रहे हैं । ऐसे लोगों से क्या
उम्मीद की जा सकती है ? लेकिन यहाँ एक संत की बात हो रही है ।
एक संत कथा कह रहे
थे । हजारों लोग कथा सुन रहे थे । चातुर्मास में कथा हो रही थी । संत बोले कि जब कौआ का काम बिना बैंक अकाउंट के-बैंक बैलेंस के चल सकता है तो आप लोगों का क्यों नहीं चल सकता ? कभी
सुना है कि कौआ का अकाउंट होता है ?
फिर आगे बोले कि आप
लोग कहोगे कि कौआ जल्दी मर जाता है तो उसे अकाउंट की क्या जरूरत है ? लेकिन मैं आप
लोगों को बताना चाहता हूँ कि कौआ जल्दी नहीं मरता है । दूसरे पक्षी तो यहाँ-वहाँ
मृत अवस्था में दिख जाते हैं । लेकिन कौआ नहीं दिखता क्योंकि उसकी आयु अधिक होती
है । फिर भी उसका काम बिना अकाउंट के चलता है ? तो आप लोगों का क्यों नहीं चल सकता
?
ऐसी कथा सुनकर आज के
समय में आज का युवा वर्ग कैसे संतों और कथाओं से जुड़ पायेगा ?
।। जय श्रीराम ।।