नमस्तुभ्यं भगवते विशुद्धज्ञानमूर्तये आत्मारामाय रामाय सीतारामाय वेधसे ।।


नमस्ते राम राजेन्द्र नमः सीतामनोरम नमस्ते चंडकोदण्ड नमस्ते भक्तवत्सल ।।


दीन मलीन हीन जग मोते । रामचंद्र बल जीवत तेते ।।

Sunday, December 15, 2024

जब कौआ का काम बिना बैंक अकाउंट के चल सकता है तो आप लोगों का क्यों नहीं चल सकता ?

 

पहले के समय में समुचित तरीके से अध्ययन के बाद बोध-ज्ञान प्राप्त होने पर आचरण में-अनुभव व व्यवहार में आ जाने पर लोग ज्ञान की बात दूसरों को बताते थे कथा कहते थे । लेकिन आज के समय में थोड़ा बहुत पढ़ लिया । थोड़ा संस्कृत सीख लिया बस लोग ज्ञानी बन जाते हैं और कथा कहने लग जाते हैं ।

                      

  कुछ लोग बताते हैं कि आज कल दो महीने में कथा कहना सीखें, दो महीने में संस्कृत सीखे आदि के कोर्से चल रहे हैं । और लोग इस तरह से ट्रेनिंग लेकर कथा कह रहे हैं । ऐसे लोगों से क्या उम्मीद की जा सकती है ? लेकिन यहाँ एक संत की बात हो रही है ।

 

   एक संत कथा कह रहे थे । हजारों लोग कथा सुन रहे थे । चातुर्मास में  कथा हो रही थी । संत बोले कि जब कौआ का काम बिना बैंक अकाउंट के-बैंक बैलेंस के चल सकता है तो आप लोगों का क्यों नहीं चल सकता ? कभी सुना है कि कौआ का अकाउंट होता है ?

 

  फिर आगे बोले कि आप लोग कहोगे कि कौआ जल्दी मर जाता है तो उसे अकाउंट की क्या जरूरत है ? लेकिन मैं आप लोगों को बताना चाहता हूँ कि कौआ जल्दी नहीं मरता है । दूसरे पक्षी तो यहाँ-वहाँ मृत अवस्था में दिख जाते हैं । लेकिन कौआ नहीं दिखता क्योंकि उसकी आयु अधिक होती है । फिर भी उसका काम बिना अकाउंट के चलता है ? तो आप लोगों का क्यों नहीं चल सकता ?

 

  यह सुनकर भी भोले-भाले लोग ताली बजाते हैं । क्योंकि उन्हें लगता है जो महाराज जी सुनाएं वही कथा है और जो सुनाएँ वही सुनने से कल्याण होगा ?


  ऐसी कथा सुनकर आज के समय में आज का युवा वर्ग कैसे संतों और कथाओं से जुड़ पायेगा ?

 

।। जय श्रीराम ।।

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