साधु-संतों और साधकों के कई गुण कहे गए हैं । जिसमें से एक गुण है
इनका एकांत सेवी होना ।
हर कोई एकांत सेवी नहीं होता है । कई लोगों के लिए यह बहुत मुश्किल
काम होता है । लेकिन साधकों के लिए यह जरूरी गुण है ।
कई लोगों को एकांत नहीं भाता है । दो-चार लोग आगे-पीछे न रहें तो
उनका मन ही नहीं लगता । लेकिन बिना एकांत सेवी हुए साधना दृढ़ नहीं होती । पुराने
समय में साधक अधिकांश समय एकांत सेवी होकर ही बिताते थे और अच्छी साधना करते थे ।
यदि कोई साधक कहता है कि एकांत में तो मेरा मन बिल्कुल नहीं लगता तो उसे इसे एक विशेष दुर्गुण के रूप में ही देखना चाहिए ।
।। जय श्रीराम ।।
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