नमस्तुभ्यं भगवते विशुद्धज्ञानमूर्तये आत्मारामाय रामाय सीतारामाय वेधसे ।।


नमस्ते राम राजेन्द्र नमः सीतामनोरम नमस्ते चंडकोदण्ड नमस्ते भक्तवत्सल ।।


दीन मलीन हीन जग मोते । रामचंद्र बल जीवत तेते ।।

Monday, August 4, 2025

साधु-संत और साधकों का एकांत सेवी होना एक विशेष गुण होता है

 

साधु-संतों और साधकों के कई गुण कहे गए हैं । जिसमें से एक गुण है इनका एकांत सेवी होना ।


हर कोई एकांत सेवी नहीं होता है । कई लोगों के लिए यह बहुत मुश्किल काम होता है । लेकिन साधकों के लिए यह जरूरी गुण है ।

 

कई लोगों को एकांत नहीं भाता है । दो-चार लोग आगे-पीछे न रहें तो उनका मन ही नहीं लगता । लेकिन बिना एकांत सेवी हुए साधना दृढ़ नहीं होती । पुराने समय में साधक अधिकांश समय एकांत सेवी होकर ही बिताते थे और अच्छी साधना करते थे ।

 

यदि कोई साधक कहता है कि एकांत में तो मेरा मन बिल्कुल नहीं लगता तो उसे इसे एक विशेष दुर्गुण के रूप में ही देखना चाहिए ।

 

।। जय श्रीराम ।।

 

 

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