जो मोहरूपी कलिल का नाश करके सदा परमात्म पद का साक्षात्कार
कराती है, वह व्रह्मविद्या भी मुझ महेश्वर की आज्ञा के ही अधीन है । इस बिषय में
बहुत कहने से क्या लाभ यह सारा जगत मेरी शक्ति से ही उत्पन्न हुआ है, मुझसे ही इस
विश्व का भरण-पोषण होता है तथा अंततोगत्वा सबका मुझमें ही प्रलय होता है-
बहुनात्र किमुक्तेन मम
शक्त्यात्मकंजगत ।।
मयैव पूर्यते विश्वं मय्येव प्रलयं
ब्रजेत् ।।
।। जय श्रीराम ।।
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