जब किसी को लोग श्रद्धा, विश्वास और सम्मान के साथ सुन रहे हों
तो वक्ता की यह जिम्मेदारी बन जाती है कि वह अपने मन से अथवा सुनी-सुनाई बातें न
कहकर तथ्य पूर्ण प्रमाणिक बातें ही बोले, बताए और कहे ।
लेकिन कुछ लोग
अप्रमाणिक बातें भी बताते, बोलते, कहते और सुनाते रहते हैं । जैसे मरने के बाद भी
हम लोग खुब सत्संग करेंगे । हम भगवान के यहाँ भी आप लोगों को खुब कथा सुनायेंगे । सुनने
वाले ताली बजाते हैं और खुश होते हैं हैं क्योंकि उन्हें भी नहीं पता होता है कि
ग्रंथों के अनुसार भगवान के यहाँ कथा होती ही नहीं है ।
इसी तरह एक लोग सुना रहे थे कि इतिहास में अर्थात जबसे सृष्टि
बनी तबसे केवल तीन लोगों को भगवान का चरण पखारने का सौभाग्य मिला है । एक
व्रह्माजी को, दूसरे जनक जी को और तीसरे केवट जी को । लोग ताली बजा रहे थे ।
एक लोग कथा सुनकर आए और बताने लगे कि इतिहास में केवल तीन
लोगों को ही भगवान का चरण पखारने का सौभाग्य मिला है । आज बहुत अच्छी कथा हुई है ।
मेरे गुरूजी ने यह मार्मिक बात बताई है ।
मैंने कहा कि ऐसा नहीं
है । कई लोगों को भगवान के चरण पखारने का सौभाग्य मिला है । ये बिचारे क्या करें
गुरूजी ने कह रखा है कि गुरू जी की बात में कोई शंका नहीं करनी है । एक बार में ही
बात मान लेनी है और किसी भी स्थिति में दोष नहीं देखना है ।
मैंने कहा कि श्रीरामचरितमानस जी के अरण्यकाण्ड को देखिए ।
शवरी जी को भी यह सौभाग्य मिला है-
सादर जल लै चरन पखारे । पुनि सुंदर
आसन बैठारे ।।
।। जय श्रीराम ।।