गोस्वामी तुलसीदासजी ने श्रीविनयपत्रिका में रामजी को बाप कहा है क्योंकि रामजी बाप के भी बाप हैं । आजतक जितने भी बाप हो चुके हैं, जितने हैं और जितने आगे होंगे उन सबके बाप भगवान श्रीराम हैं । अतः इस लेख में बाप का मतलब भगवान है ।
अब प्रश्न यह है कि ये बापजी जो बाप के भी बाप सबके बाप हैं इनका दर्शन कब होता है ? ये बापजी कब मिलते हैं ? इस लेख में बापजी से मिलने का एक सूत्र बताया गया है ।
भगवान से मिलने का कोई एक ही रास्ता नहीं है । कोई कहे कि ऐसा करने पर ही भगवान मिलते हैं । अथवा ऐसा करने पर ही भगवान का दर्शन होता है तो यह गलत है ।
ऐसा कोई नहीं कह सकता
है कि भगवान से मिलने का, भगवान के दर्शन का एक ही रास्ता है अथवा यही रास्ता है ।
फिर भी निम्नलिखित दोहों में वर्णित स्थिति, अवस्था भगवान के दर्शन का एक सूत्र है -
भोग रोग सा जब लगे, भीड़ लगे जिमि साँप
।
रामदास नयना झरे, हर पल सुमिरन जाप ।।
राम दरश की लौ लगी, राम विरह उर ताप ।
रामदास ऐसी लगन, देखि मिलेंगे बाप ।।
।। जय श्रीराम ।।