कलियुग में कलियुग की कुचाल के चलते सन्यास लेते ही मन बिगड़ने लगता है
। शायद इसलिए ही कलियुग में सन्यास वर्जित है ऐसा भी कहा गया है । सन्यास ले लेना
और निबाहना दो बातें होती हैं । लेने को तो कई लोग सन्यास ले लेते हैं लेकिन सही
अर्थों में निबाहते कितने हैं यह महत्वपूर्ण है ।
जैसे आजकल अनेकानेक लोग किसी गुरू के चेले बन जाते हैं । दीक्षा
ले लेते हैं । दीक्षा लेने के बाद निभाते कितने लोग हैं । यह बड़ी बात है ।
सन्यास आश्रम चार आश्रमों में अंतिम है । यदि सन्यास आश्रम में भी मन बिगड़ता है, आशा-इच्छा साथ नहीं छोड़ती तो फिर इसका कोई विशेष मतलब नहीं रह जाता । संन्यास के बाद तो फिर एक ही चाह और एक ही आश राम श्याम घन की ही होनी चाहिए । यही इसकी सार्थकता है । लेकिन इस कलिकाल की कुचाल ऐसी है कि गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज कहते हैं कि जैसे जल डालने से कच्चा घड़ा बिगड़ने लग जाता है ठीक वैसे ही कलियुग में सन्यास लेते ही मन बिगड़ने लग जाता है । शायद इसी के चलते कई लोग बिगड़ भी जाते हैं । और कुछ विरले ही संभल कर रह पाते हैं-
बिगरत मन सन्यास लेत, जल नावत आम घरो
सो ।
-श्रीविनयपत्रिका-गोस्वामी
तुलसीदास जी ।
।। जय श्रीराम ।।
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