नमस्तुभ्यं भगवते विशुद्धज्ञानमूर्तये आत्मारामाय रामाय सीतारामाय वेधसे ।।


नमस्ते राम राजेन्द्र नमः सीतामनोरम नमस्ते चंडकोदण्ड नमस्ते भक्तवत्सल ।।


दीन मलीन हीन जग मोते । रामचंद्र बल जीवत तेते ।।

Saturday, June 7, 2025

रावण के सिंहासन की सीढ़ी के पायदान

 सीढ़ियों में पायदान लगे होते है | पायदान पर पैर रखकर ऊपर जाया जाता है | सामान्यतः पायदान लकड़ी, लोहे आदि के बने होते हैं | लेकिन रावण के सिंहासन की सीढ़ी के पायदान ऐसे नहीं थे |


लंका का राजा रावण जिस सीढ़ी से अपने सिंहासन पर जाता था उस सीढ़ी के नव पायदान की जगह उसने नव ग्रहों को रख रखा था |

इस प्रकार रावण के सिंहासन की सीढ़ी के नव पायदान नौ ग्रह थे | रावण इनके ऊपर पैर रखते हुए अपने सिंहासन पर जाता था |


|| जय श्रीराम ||

Sunday, May 25, 2025

सत्संग में श्रोता और वक्ता में वक्ता की श्रेष्ठता का महत्व

 

 जिसके माध्यम से सत्संग मिल रहा होता है उसका स्तर क्या है ? इस बात का अधिक महत्व होता है 

 

लंका में लंकिनी नाम की एक दुष्ट राक्षसी रहती थी । उसे लंका की रक्षा का काम मिला हुआ था  हनुमानजी महराज के सत्संग से राक्षसी लंकिनी का भी विवेक जागृत हो गया ।  और उसे स्वर्ग और मोक्ष के सुख की अपेक्षा हृदय में कोशलपुर के राजा रामजी को हृदय में धारण करने का सुख श्रेष्ठत लगने लगा था । 

 

इसप्रकार कहा जा सकता है कि सत्संग में श्रोता और वक्ता दोनों का स्तर महत्वपूर्ण होता है लेकिन इस घटना से पता चलता है कि वक्ता का स्तर श्रेष्ठ होना ज्यादा जरूरी है । और जब वक्ता में हनुमानजी महाराज जी के कोटि की साधुता और भक्ति होगी तभी सत्संग में स्वर्ग और मोक्ष के सुख से अधिक सुख मिलने की बात सत्य और सार्थक होगी 


 । जय श्रीराम 

Friday, April 18, 2025

हनुमानजी में बोलो बल कितना

 

हनुमानजी में बोलो बल कितना ।

कोई माप नहीं, है बल इतना ।।

दस सहस गज में बल जितना ।

एक दिग्गज में होता बल उतना ।।

दस सहस दिग्गज में बल जितना ।

एक एरावत में होता बल उतना ।।

दस सहस एरावत में बल जितना ।

एक इंद्र में होता है बल उतना ।।

दस सहस इंद्र में बल जितना ।

कनिष्ठा अगुंली में ही है बल इतना ।।

कोई कैसे कहेगा बल कितना 

हनुमान जी में अतुलित बल जितना 

 

 

।। महावीर हनुमान जी की जय ।।

Friday, March 14, 2025

रामकाज हेतु रामदूत उड़ि चले

 

बार-बार राम को संभारि रामकाज हेतु रामदूत उड़ि चले ।

बल बुद्धि ज्ञान के निधान अंजना को लाल जैसो कौन मिले ।।

महावीर वेग ते पहाड़, नीर तरु आदि जोर-जोर ते हिले ।

पूरेगी मन आस रामदास खास, देखि देवतन के मन खिले ।। 


।। जय हनुमान ।।

Sunday, February 16, 2025

भगवान राम का विराटरूप- विश्वरूप


कई लोग अज्ञानता के कारण ऐसा कहते हैं कि राम जी ने कभी विराट रूप धारण नहीं किया था | जबकि ऐसा कहना बिल्कुल तथ्य हीन और भ्रामक है | और ऐसा कहने वालों की मूर्खता मात्र है |


रामजी ने कौशल्या जी को, हनुमान जी को और देवताओं, ब्रह्मा जी, विष्णु जी तथा शंकर जी को विराट रूप दिखाया था | इस तथ्य का वर्णन क्रमशः श्रीरामचरितमानस जी, अद्भुत रामायण और स्कंद पुराण में मिलता है |


|| जय श्रीराम ||

Sunday, February 9, 2025

विवाह के बाद बेटियों से सभी सम्बन्ध समाप्त कर देना चाहिए- एक संत का उपदेश

 एक संत श्रोताओं को उपदेश देते हुए कह रहे थे कि विवाह के बाद बेटियों से सभी सम्बन्ध समाप्त कर देना चाहिए | 

वह मरे अथवा जिये इससे कोई मतलब नहीं होना चाहिए | विवाह कर दिया बस फिर कोई मतलब नहीं |


जब साधु, संत, कथा वाचक ही ऐसी बात करने लगेंगे तो और कोई क्या कर सकता है | जिसको सदराह दिखाना चाहिए वही गुमराह करने लगे तो देश समाज का पतन नहीं तो और क्या होगा ? 


रामदास कलिकाल में, मति जाती है रूठ |

ठूठे को समुझत हरा, हरे पेड़ को ठूठ ||


|| जय श्रीराम ||

Saturday, February 1, 2025

श्रीराम गीता अनमोल वचन - सबकी उत्पप्ति, पालन-पोषण मुझसे ही होता है और सबका मुझमें ही प्रलय हो जाता है

 

जो मोहरूपी कलिल का नाश करके सदा परमात्म पद का साक्षात्कार कराती है, वह व्रह्मविद्या भी मुझ महेश्वर की आज्ञा के ही अधीन है । इस बिषय में बहुत कहने से क्या लाभ यह सारा जगत मेरी शक्ति से ही उत्पन्न हुआ है, मुझसे ही इस विश्व का भरण-पोषण होता है तथा अंततोगत्वा सबका मुझमें ही प्रलय होता है-


बहुनात्र किमुक्तेन मम शक्त्यात्मकंजगत ।।

मयैव पूर्यते विश्वं मय्येव प्रलयं ब्रजेत् ।।



।। जय श्रीराम ।।

Wednesday, January 1, 2025

भगवान का उपहास

 

वैसे तो भगवान का उपहास कोई नहीं कर सकता क्योंकि आकाश पर थूकने की कोशिश करने वाला कभी सफल नहीं हो सकता । यह असंभव प्रयास है ।

 

 कलियुग में कई लोग भगवान को बहुत हल्का बनाने का प्रयास कर रहे हैं । जबकि भगवान में बड़ी गुरुता है । और इसलिए एकमात्र भगवान ही सचमुच के विश्व गुरू और जगदगुरू हैं ।

 

  कोई भगवान के दर्शन को, कोई लीला में प्रवेश को और कोई भगवद प्राप्ति को  बहुत हल्का बता रहा है । कोई भगवान के नाम पर, कल्याण के नाम पर हल्का उपदेश कर रहा है । कोई अनुभवहीनता के चलते उल्टा-पुल्टा अथवा गुमराह करने वाला उदेश कर रहा है ।

 

  लोग सरल और बड़ा संत समझे इसलिए कोई कुछ कर अथवा बोल रहा है ।  अनुयाई बढ़ें इसलिए कोई कुछ कर या कह रहा है ।  लोग भक्त समझें, भगवद प्राप्त महापुरुष हैं ऐसा समझे इसलिए कोई कुछ बोल, कह अथवा कर रहा है ।

 

  इनका लीला में प्रवेश हो चुका है, इनको भगवान का दर्शन हो चुका है, ये दर्शन करा सकते हैं, ये कल्याण करा सकते हैं, ये सबसे श्रेष्ठ है लोग ऐसा समझें इसलिए कोई  कुछ कर, कह अथवा बोल रहा है ।

 

इस तरह कई लोग कुछ अलग करने, कहने अथवा बोलने में लगे हुए हैं । 


 कुछ लोग यह बताने, समझाने, सिखाने में लगे हैं कि वेश सही है तो सब सही है, सब भगवान ही हैं ।

 

इससे भगवान का उपहास हो सकता है । क्योंकि लोग ऐसा सोच सकते हैं, समझ सकते हैं कि क्या सचमुच भगवान भी ऐसे हैं क्योंकि ये लोग तो ऐसे ही हैं और जैसे भी हैं भगवान ही हैं ।


रामदास कलिकाल में, बनी रहै पहचान 

जो मन भावै सो करैं, लीक तजन की ठान ।।


उल्टा-सीधा जो करैं, कहैं सोई उपदेश ।

रामदास भगवान सब, धरे जो सुंदर वेश ।।


महापुरुष सब जानिए, सब को भगवद प्राप्त ।

रामदास कम न रुचै, छोभु जाय उर व्याप्त ।।

 

 

।। जय श्रीराम ।।

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