बार-बार राम को संभारि रामकाज हेतु रामदूत उड़ि चले ।
बल बुद्धि ज्ञान के निधान अंजना को लाल जैसो कौन मिले ।।
महावीर वेग ते पहाड़, नीर तरु आदि जोर-जोर ते हिले ।
पूरेगी मन आस रामदास खास, देखि देवतन के मन खिले ।।
।। जय हनुमान ।।
जो सदा अर्थात तीनों कालों में और सर्वत्र सत्य रहता है । वह ही शाश्वत कहलाता है । वही सनातन कहलाता है । और सनातन धर्म के अनुसार परमात्मा सत्य, शास्वत और सनातन है ।
नमस्तुभ्यं भगवते विशुद्धज्ञानमूर्तये । आत्मारामाय रामाय सीतारामाय वेधसे ।।
नमस्ते राम राजेन्द्र नमः सीतामनोरम । नमस्ते चंडकोदण्ड नमस्ते भक्तवत्सल ।।
बार-बार राम को संभारि रामकाज हेतु रामदूत उड़ि चले ।
बल बुद्धि ज्ञान के निधान अंजना को लाल जैसो कौन मिले ।।
महावीर वेग ते पहाड़, नीर तरु आदि जोर-जोर ते हिले ।
पूरेगी मन आस रामदास खास, देखि देवतन के मन खिले ।।
।। जय हनुमान ।।
कई लोग अज्ञानता के कारण ऐसा कहते हैं कि राम जी ने कभी विराट रूप धारण नहीं किया था | जबकि ऐसा कहना बिल्कुल तथ्य हीन और भ्रामक है | और ऐसा कहने वालों की मूर्खता मात्र है |
रामजी ने कौशल्या जी को, हनुमान जी को और देवताओं, ब्रह्मा जी, विष्णु जी तथा शंकर जी को विराट रूप दिखाया था | इस तथ्य का वर्णन क्रमशः श्रीरामचरितमानस जी, अद्भुत रामायण और स्कंद पुराण में मिलता है |
|| जय श्रीराम ||
एक संत श्रोताओं को उपदेश देते हुए कह रहे थे कि विवाह के बाद बेटियों से सभी सम्बन्ध समाप्त कर देना चाहिए |
वह मरे अथवा जिये इससे कोई मतलब नहीं होना चाहिए | विवाह कर दिया बस फिर कोई मतलब नहीं |
जब साधु, संत, कथा वाचक ही ऐसी बात करने लगेंगे तो और कोई क्या कर सकता है | जिसको सदराह दिखाना चाहिए वही गुमराह करने लगे तो देश समाज का पतन नहीं तो और क्या होगा ?
रामदास कलिकाल में, मति जाती है रूठ |
ठूठे को समुझत हरा, हरे पेड़ को ठूठ ||
|| जय श्रीराम ||
जो मोहरूपी कलिल का नाश करके सदा परमात्म पद का साक्षात्कार
कराती है, वह व्रह्मविद्या भी मुझ महेश्वर की आज्ञा के ही अधीन है । इस बिषय में
बहुत कहने से क्या लाभ यह सारा जगत मेरी शक्ति से ही उत्पन्न हुआ है, मुझसे ही इस
विश्व का भरण-पोषण होता है तथा अंततोगत्वा सबका मुझमें ही प्रलय होता है-
बहुनात्र किमुक्तेन मम
शक्त्यात्मकंजगत ।।
मयैव पूर्यते विश्वं मय्येव प्रलयं
ब्रजेत् ।।
।। जय श्रीराम ।।
वैसे तो भगवान का उपहास कोई नहीं कर सकता
क्योंकि आकाश पर थूकने की कोशिश करने वाला कभी सफल नहीं हो सकता । यह असंभव प्रयास है ।
कलियुग में कई लोग
भगवान को बहुत हल्का बनाने का प्रयास कर रहे हैं । जबकि भगवान में बड़ी गुरुता है ।
और इसलिए एकमात्र भगवान ही सचमुच के विश्व गुरू और जगदगुरू हैं ।
कोई भगवान के दर्शन
को, कोई लीला में प्रवेश को और कोई भगवद प्राप्ति को बहुत हल्का बता रहा है । कोई भगवान के नाम पर, कल्याण के नाम पर हल्का उपदेश कर रहा है । कोई अनुभवहीनता के चलते उल्टा-पुल्टा
अथवा गुमराह करने वाला उदेश कर रहा है ।
लोग सरल और बड़ा संत समझे इसलिए कोई कुछ कर अथवा बोल रहा है । अनुयाई बढ़ें इसलिए कोई कुछ कर या कह रहा है । लोग भक्त समझें, भगवद प्राप्त महापुरुष हैं ऐसा समझे इसलिए कोई कुछ बोल, कह अथवा कर रहा है ।
इनका लीला में प्रवेश हो चुका है, इनको भगवान का दर्शन हो चुका है, ये दर्शन करा सकते हैं, ये कल्याण करा सकते हैं, ये सबसे श्रेष्ठ है लोग ऐसा समझें इसलिए कोई कुछ कर, कह अथवा बोल रहा है ।
इस तरह कई लोग कुछ अलग करने, कहने अथवा बोलने में लगे हुए हैं ।
कुछ लोग यह बताने, समझाने, सिखाने में लगे हैं कि वेश सही है तो सब सही है, सब भगवान
ही हैं ।
इससे भगवान का उपहास हो सकता है । क्योंकि लोग ऐसा सोच सकते हैं, समझ
सकते हैं कि क्या सचमुच भगवान भी ऐसे हैं क्योंकि ये लोग तो ऐसे ही हैं और जैसे भी
हैं भगवान ही हैं ।
रामदास कलिकाल में, बनी रहै पहचान ।
जो मन भावै सो करैं, लीक तजन की ठान ।।
उल्टा-सीधा जो करैं, कहैं सोई उपदेश ।
रामदास भगवान सब, धरे जो सुंदर वेश ।।
महापुरुष सब जानिए, सब को भगवद
प्राप्त ।
रामदास कम न रुचै, छोभु जाय उर व्याप्त ।।
।। जय श्रीराम ।।